Monday 3 December 2012

अजेय और अमोघ शस्त्र


      संसार में मनुष्य के सिवा जितने भी और प्राणी हैं, वे सब मिलकर भी उतना पाप नहीं कर सकते, जितना अपनी बुद्धि को बुराई  में लगाकर मनुष्य कर सकता है l हिंस्त्र पशु-पक्षी उतने ही और उन्हीं जीवों को मार सकते हैं, जो उनके सामने होते हैं, परन्तु मनुष्य तो अपनी बुद्धि के कौशल से ऐसे-ऐसे कार्य करता है कि जिनसे लाखों-करोड़ों प्राणी पीढ़ियों तक मरते रहते हैं l  'साक्षरा' को उलटा पढने से 'राक्षसा' हो जाता है, अतएव जब बुद्धिमान मनुष्य की बुद्धि विपरीत कार्यों में लगती है तब वह उसे राक्षस बना देती है l आज हमारी इस पृथ्वी के महान विज्ञानंवेताओं की यही स्थिति है l अणु बम बना, फिर हाईड्रोजन बम बना और अब उससे भी अत्यंत भयंकर कबाल्ट बम बनने की बात सुनी जाती है l ये महासंहार के राक्षसी साधन मनुष्य की विपरीत बुद्धि के ही परिणाम है l ऐसी चीज़ें बनाकर और इनका प्रयोग करके जब मनुष्य अभिमान करता है, तब तो उसका अत्यंत क्रूर स्वरुप सर्वथा प्रकट हो जाता है l
       जले घाव पर नमक छिड़कने की या किसी को मारकर उसे तड़पते देखकर हँसने की भान्ति अमेरिका ने जापान से कहा था कि हाईड्रोजन बम के परीक्षण के समय  जो जापानी मछुए घायल हो गए है, उनके परिवार को अमेरिका क्षतिपूर्ति देने के लिए तैयार है l पहले तो निरपराध नर-नारियों को बम-परीक्षण के बहाने घायल करना और जब कभी भी अवसर आ जाय , उनको मार भी डालना और पीछे क्षतिपूर्ति देने की बात कहना - असुर की गर्वोक्ति के सिवा और क्या है ? मामूली मनुष्य किसी भी निरपराध को मारता  है तो वह दण्ड का पात्र होता है, पर ये बड़े-बड़े राष्ट्र लाखों-करोड़ों निरपराध नर-नारियों को तथा अन्यान्य निर्दोष प्राणियों को बुरी तरह भुन डालने का गर्वपूर्ण प्रत्यक्ष आयोजन करते हैं, पर इन्हें कोई कुछ कहने की साहस नहीं करता l मनुष्य का यह आसुरी भावों से प्रभावित होकर महान पाप में सहायक होना नहीं है तो और क्या है ?
     
सुख-शान्ति का मार्ग[333]       
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Ram