Tuesday 4 December 2012

अजेय और अमोघ शस्त्र


अब आगे____
          भारतवर्ष को भी इस प्रकार के शस्त्र बनाने चाहिये l बात ठीक है, समय देखते और जगत के बड़े-बड़े विज्ञानं-कुशल, समृद्धिशाली - ऐश्वर्यवान, बुद्धिमान और विद्वान देश - जहाँ बड़ी उत्सुकता के साथ संसार के लोग विविध विषयों की शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं - जिस कम को करते हैं, उसका अनुकरण करने की इच्छा स्वाभाविक ही होती है और यह भी किसी अंश में सत्य है कि आत्मरक्षा के लिए भी इसकी आवश्यकता मानी जा सकती है, क्योंकि जिसके पास ऐसे भयानक शस्त्र  होंगे, उस पर आक्रमण करने का साहस  सहज में किसी को नहीं होगा l  अमेरिका ने प्रतिकार करने में अथवा प्रतिशोध लेने में असमर्थ जापान पर अणु बम से आक्रमण किया,परन्तु वाही इस समय रूस पर सहसा आक्रमण नहीं करना चाहता ; क्योंकि वह जानता है कि रूस के पास भी ऐसे  ही शस्त्र हैं, जो बदले में अमेरिका का भी नाश कर सकते हैं l तथापि, न तो भारतवर्ष के पास इतनी धनराशि और आसुरी विज्ञानं-सम्पत्ति है कि वह ऐसे शस्त्र बनाने में समर्थ हो औत न उसका यह ध्येय ही होना चाहिये l महावीर अर्जुन ने माय दानव के प्रति राक्षसी शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने से भी इंकार कर दिया था। हमारे पास तो सच्चा बल होना चाहिये - भगवान् में विश्वास का और भगवान् को प्रसन्न करने वाले सद्गुण-सत्य,अहिंसा आदि का। यह बल यदि हमने सचमुच अर्जन का लिया और भगवान् पर विश्वास करके भगवान् के आज्ञानुसार भगवान् के ही बल पर वीर की भान्ति हम कुशलतापूर्वक इस प्रलयंकारी आसुरी आंधी का सामना कने को प्रस्तुत हो सके तो जगत की किसी भी आसुरी शक्ति की यह सामर्थ्य नहीं कि वह हमारा कुछ भी अनिष्ट कर सके l लंका के समरांगण में भगवान् श्रीरामचन्द्र को रथरहित और नंगे पैर देखकर जब विभीषण ने अधीर होकर प्रेमातिरेक से अनिष्ट-शंका की, तब कृपालु भगवान् श्रीरामचन्द्रजी ने कहा था -
  सौरज  धीरज तेहि  रथ  चाका।
 सत्य सील  दृढ  ध्वजा  पताका।।
 बल  बिबेक  दम   परहित  घोरे।
 छमा  कृपा  समता   रजु   जोरे।।
  ईस   भजनु   सारथी   सुजाना।
 बिरति   चर्म   संतोष    कृपाना ।।
  दान  परसु  बुधि  सक्ति  प्रचंडा।
 बर   बिग्यान   कठिन    कोदंडा।।
 अमल अचल मन त्रोन सामना।
 सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
  कवच  अभेद   बिप्र  गुर  पूजा।
 एहि  सम  बिजय  उपाय न दूजा।।
 सखा   धर्ममय  अस  रथ   जाकें।
 जीतन  कहँ  न  कतहूँ  रिपु ताकें।।

सुख-शान्ति का मार्ग[333]
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Ram