हमारी भारतीय बहनों में भी आज विदेशी श्रृंगार का तथा विदेशी सौन्दर्य-प्रसाधनो का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है तथा इससे बड़ी हानि हो रही है; यह आपका लिखना ठीक है। जहाँ तक गन्दगी के त्याग तथा सफाई-सुथराई का प्रश्न है, वहां तक तो उत्तम है; परन्तु विदेशी संग से जो विदेशीपन तथा कृत्रिम श्रृंगार एवं सौन्दर्य-लिप्सा बढ़ रही है, यह बहुत ही हानिकर है। इसका एक प्रधान कारण आजकल के सिनेमा हैं। सिनेमा की बुरी बातें पढ़े-लिखे तथा बड़े माने जानेवाले लोगों में आती है और उनका अनुकरण साधारण जनता करती है। इस सम्बन्ध में बार-बार कहा भी जाता है, पर उस पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। इस प्रकार की सौन्दर्य-लिप्सा से मानस-व्यभिचार होता है, सुनने-देखनेवालों में नीच वृतियों का उदय होता है और उससे उनका पतन होता है। पापकर्म बनते है, जिनसे लोक-परलोक बिगड़ता है, बुरे आदर्श की स्थापना होती है। इसके अतिरिक्त शारीरिक हानि भी कम नहीं होती। हमलोगों की बात तो छोडिये, कुछ वर्षों पहले इंगेबर्ग नीमांड एन्डर्सन नाम की एक जर्मन महिला डॉक्टर ने इन सौन्दर्य-प्रसाधनो का हानिकारक प्रभाव बतलाते हुए इन्हें न बरतने के लिए अनुरोध किया है और कड़ी आलोचना दी है। वे लिखती हैं-
सबसे बढ़कर खतरनाक श्रृंगार-प्रसाधन हैं - सुगन्धियाँ, नख-राग (नेल-पोलिश), अधर-राग(लिपस्टिक), आँखों की पलकों को रँगने के रंग, क्रीम, पेस्ट और पाउडर l बालों को रँगने वाली चीज़ों, खासकर जिनसे पैराफिनाइल एंडियामाइन हो, बालों के लोशन, ब्रिलिएन्ताइन और बालों को घुंघराले बनाने के लिए काम में आने वाले थियोग्लारकोल एसिड का भी बुरा असर होता है। इनसे एग्जीमा, पलकों की बीमारी, दृष्टि का धुंधलापन , श्लेष्मिक, झिल्ली=प्रदाह और दमा हो जाता है। प्लास्टिक लगे हारों, कंगनों, झुमकों, हेयर-क्लिपों और कंघियों से भी बीमारियाँ पैदा होती हैं। इन सौदर्य-प्रसाधनों से स्वास्थ्य में विकार आता है। वे आधुनिक फैशन कितने ही अच्छे क्यों न लगते हों, इनसे काफी हानि होती है। इनका व्यवहार करने वाली महिलाओं और लड़कियों को अपने मूल आकर्षण का मूल्य बाद में विविध रोगों के रूप में चुकाना पड़ता है।'
अतएव यह सौन्दर्य-लिप्सा और इसके लिए कृत्रिम साधनों का प्रयोग जितना ही कम होगा, उतना ही शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य सुधरेगा। इनकी बुराई को समझकर तथा विनय-विनम्र शब्दों में दूसरों को समझाकर इनसे बचने-बचाने का यथासाध्य प्रयत्न सभी को करना चाहिये l आप भी आस-पास की तथा अपने सम्बन्ध वाली बहनों को समझाने का प्रयत्न कीजिये।
सुख-शान्ति का मार्ग[333]
सबसे बढ़कर खतरनाक श्रृंगार-प्रसाधन हैं - सुगन्धियाँ, नख-राग (नेल-पोलिश), अधर-राग(लिपस्टिक), आँखों की पलकों को रँगने के रंग, क्रीम, पेस्ट और पाउडर l बालों को रँगने वाली चीज़ों, खासकर जिनसे पैराफिनाइल एंडियामाइन हो, बालों के लोशन, ब्रिलिएन्ताइन और बालों को घुंघराले बनाने के लिए काम में आने वाले थियोग्लारकोल एसिड का भी बुरा असर होता है। इनसे एग्जीमा, पलकों की बीमारी, दृष्टि का धुंधलापन , श्लेष्मिक, झिल्ली=प्रदाह और दमा हो जाता है। प्लास्टिक लगे हारों, कंगनों, झुमकों, हेयर-क्लिपों और कंघियों से भी बीमारियाँ पैदा होती हैं। इन सौदर्य-प्रसाधनों से स्वास्थ्य में विकार आता है। वे आधुनिक फैशन कितने ही अच्छे क्यों न लगते हों, इनसे काफी हानि होती है। इनका व्यवहार करने वाली महिलाओं और लड़कियों को अपने मूल आकर्षण का मूल्य बाद में विविध रोगों के रूप में चुकाना पड़ता है।'
अतएव यह सौन्दर्य-लिप्सा और इसके लिए कृत्रिम साधनों का प्रयोग जितना ही कम होगा, उतना ही शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य सुधरेगा। इनकी बुराई को समझकर तथा विनय-विनम्र शब्दों में दूसरों को समझाकर इनसे बचने-बचाने का यथासाध्य प्रयत्न सभी को करना चाहिये l आप भी आस-पास की तथा अपने सम्बन्ध वाली बहनों को समझाने का प्रयत्न कीजिये।
सुख-शान्ति का मार्ग[333]
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