Saturday, 26 January 2013

सद्गुरु -1-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ  शुक्ल, चतुर्दशी, शनिवार, वि० स० २०६९


गुरुर्ब्रह्मा गुरुविष्णु: गुरुर्देवो महेश्वरः |

गुरु: साक्षातपरम्  ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ||


भारतीय साधना में गुरु-शरणागति सर्वप्रथम हैं | सद्गुरु की कृपा बिना साधना का यथार्थ रहस्य समझ में नहीं आ सकता |केवल शास्त्रों और तर्कों से लक्ष्य तक नहीं पंहुचा जा सकता | अनुभवी सद्गुरु साधनपथ के अन्तराय, उससे बचने के उपाय और साधन मार्ग का उपादेय पाथेय बतलाकर शिष्य को लक्ष्य तक अनायास ही पहुँचा देते है | इसलिये श्रुतियो से लेकर वर्तमान समय के संतो की वाणी तक सभी में एक स्वर से सद्गुरु की शरण में उपस्थित होकर अपने अधिकार के अनुसार उनसे उपदेश प्राप्त कर तदनुकूल आचरण करने का आदेश दिया है | सभी संतो ने मुक्तकंठ से गुरु महिमा का गान किया है | यहाँ तक की गुरु और गोविन्द  दोनों के एक साथ मिलने पर पहले गुरु को ही प्रणाम करने की विधि बतलाई गयी है; क्योकि गुरु कृपा से ही गोविन्द के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होता है | गुरु की महिमा अवर्णनीय है | वे पुरुष धन्य हैं - बड़े ही सौभाग्यवान है जिन्हें सद्गुरु मिले और जिन्होंने अपना जीवन उनके आज्ञा पालन के लिए सहर्ष उत्सर्ग कर दिया |

वास्तव में यथार्थ पारमार्थिक साधन सद्गुरु की सन्निधि में ही संभव हैं | कृपालु गुरु के कर्णधार हुए बिना साधन-तरणी का विषय-समुद्र की नभोव्यापिनी उत्ताल-तरंगो से बच कर उस पार तक पहुच जाना नितान्त असम्भव है | इसलिये प्रत्येक साधक को सद्गुरु की खोज करनी चाहिये और ईश्वर से आर्तभाव से प्रार्थना करनी चाहिये की जिसमे इश्वरानुग्रह से सद्गुरु की प्राप्ति हो जाये; क्योकि वास्तविक संत-महात्मा भगवत्कृपा से ही प्राप्त होते है |

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram