|| श्री हरि:
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, पूर्णिमा,
रविवार, वि० स० २०६९
इसमें सन्देह नहीं की यदि सद्गुरु प्राप्ति की अति-तीव्र
इच्छा हो तो स्वयं परमात्मा सद्गुरु रूप से प्रगट होकर मुमुक्षु साधक को साधनपथ
प्रदर्शित कर कृतार्थ कर सकते है | खोज मन से होनी चाहिये और होनी चाहिये केवल
तत्वज्ञ पुरुष को प्राप्तकर स्वयं तत्व समझने के पवित्र उदेश्य से; परीक्षा या
कौतूहल के लिए नहीं; क्योकि सच्चे संत न तो परीक्षा दिया करते है, न परीक्षा में
उत्तीर्ण होकर जगत में मान प्रतिष्ठा प्राप्त
करने या प्रतिभाशाली व्यक्तिओ उन्हें शिष्य बनाने की इच्छा रखते है | जो श्रधा से
उनकी शरण होता है, उसी के सामने वे उसके अधिकारनुसार रहस्य प्रगट किया करते है |
गोपनीय रहस्य अतपस्क, अश्रद्धालु, तार्किक, दोषानवेषणकारी, नास्तिक और कौतूहल
प्रिय मनुष्य के सम्मुख प्रगट करने में न तो कोई लाभ है और न साधु-सुधीजन प्रगट
किया करते है | भगवान ने स्वयं श्रीमुख से अधिकार की मीमांसा कर दी है
इदं ते नातपस्काय नाभक्ताय कदाचन |
न चासुश्रवे वाच्यं न च मां योअभ्य्सूयति ||
‘यह जो परम गुप्त रहस्य तुझ अत्यन्त प्रिय मित्र को मैंने
बतलाया है इसे तपरहित, भक्ति रहित, सूनना न चाहने वाले और मेरी (भगवान) की निन्दा
करने वाले लोगो को भूल कर भी न बतलाना |’ इससे यह सिद्ध होता है की यथार्थ संत-महात्मा
पुरुष अधिकारी की परीक्षा किये बिना गुह्य रहस्य प्रगट नहीं करते | अपने को साधारण
मनुष्य बतला कर ही पिण्ड छुटा लिया करते है | लोग उन्हें असाधारण माने, यह तो उनकी
चाह होती नहीं और असली बात बतलाने का वे अधिकारी पाते नहीं, इसलिए स्वयं अनजान-से बन जाते है और वास्तव यह सत्य
ही है की ईश्वर का यथार्थ तथ्य ईश्वर के अतिरिक्त दूसरा जानता भी कौन हैं ? अतएव
तीव्र मुमुक्षा और श्रधा को साथ रखकर सद्गुरु की अन्वेषण करने से सद्गुरु की
प्राप्ति अवश्य हो सकती, इसमें कोई सन्देह नहीं |
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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