|| श्री हरिः
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, पन्चमी
,बुधवार , वि० स० २०६९
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा:
मेरे एक मित्र मुझसे कहा करते थे कि जब हम निर्धन थे, तब यह
इच्छा होती थी कि बीस हज़ार रूपये हमारे पास हो जायेंगे तो हम केवल भगवान का भजन
करेंगे | परन्तु इस समय हमारे पास लाखो रूपये है, वृधावस्था हो चली है, परन्तु धन
की तृष्णा किसी-न-किसी रूप में बनी ही रहती है | यही तो तृष्णा का स्वरुप है |
जगत के सुख भोगों की तृष्णा ने ही लोगों को भगवान से विमुख
कर रखा है | यह पिशाचिनी किसी भी काल में भगवचिन्तन के लिए मनका पिण्ड नहीं छोड़ती |
सदा-सर्वदा सर पर सवार रहती है | रेल में, मोटर में, गाड़ी में, मन्दिर में, मस्जिद
में, दूकान में, घर में, बाजार में , वन में, सभा में और समारोह में सभी जगह साथ
रहती है | इसी से मनुष्य दुःखो से छुटकारा नहीं पा
सकता |
भगवान श्रीराम कहते है
सर्वसंसारदुखानां त्रष्णाका दीर्घ दु:खदा |
अन्त:पुरर्स्थम्पि या योज्य्त्यति संकटे ||
संसार में जितने दुःख है, उन सबमें तृष्णा ही सबसे अधिक दुखदायिनी
है | जो कभी घर से बाहर भी नही निकलता, तृष्णा उसे भी बड़े संकट में दाल देती है |
भिष्यत्यपि धीरं मांमन्ध्यय्त्यपि सेक्षणम् |
खेद्त्य्यपि सानन्दं त्रष्णा क्र्ष्णेव शर्वरी ||
तृष्णा महा-अन्धकारमयी कालरात्रि की तरह धीर पुरुष को भी
डरा देती है , चक्षुयुक्त को भी अन्धा बना देती है और शान्त को भी खेद युक्त कर
देती है |
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
नित्यलीलालीन श्रधेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद
पोद्धार,कल्याण अंक,वर्ष ८६,संख्या ३,पन्नासंख्या ५७४,गीताप्रेस, गोरखपुर
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