Thursday, 3 January 2013

दैवी विपत्तियाँ और उनसे बचने का उपाय -2


आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष कृष्ण ६, गुरूवार, वि० स० २०६९


संसार में कुछ भी अनियमित नहीं होता | सभी कुछ सत्य, न्याय और दया से सनी हुई भगवती शक्ति के नियमाधीन होता है जो जीव के कर्मवश विविध भांति से उनके शरीरो का सृजन, पालन और संहार करती हुई उन्हें सतत कल्याण के मार्ग पर अग्रसर करना चाहती है और करती रहती है | जैसे सृजन और पालन का कार्य सर्वत्र सतत नियमित चल रहा है, इसी प्रकार संहार का भी चल रहा है; परन्तु किसी अज्ञात नियम के अनुसार जब एक ही जगह एक ही समय में अधिक संहार होने लगता है, तब हम उसे कोई असाधारण घटना समझकर सिहर उठते हैं  और समझते है मानो सर्वनाश हो गया; परन्तु ऐसी बात नहीं है |
    
        जब बार-बार बिजली कौंधती है, बदल गरजते है,आंधी आती है और साथ ही मुसलाधार वर्षा होने लगती है, तब भीगा हुआ राह का मुसाफिर जाड़े से काँपता हुआ सोचता है, न मालूम यह प्रलयवृष्टि  बंद होगी या नहीं; परन्तु थोड़ी ही देर में बादल हट जाते है, आकाश निर्मल हो जाता है, सूर्य की किरणे सब ओर अपना प्रकाश फैला देती है और पथिक सुखी होकर अपने गंतव्य स्थान की ओर चल देता है | यही तो संसार का स्वरुप है | इसमें उतार-चढाव होता ही रहता है; प्रतिक्षण परिवर्तन, रूपान्तर, मरण और सृजन हो रहा है | इस सारी लीला में वस्तुत: एक लीलामय ही खेलता है, वह विधाता ही विधान का स्वांग धारण करता है | उसकी कृपा उससे अभिन्न है | हम उसे पहचानते नहीं, यही हमारा मोह है | भक्त और ज्ञानी उसे पहचानते है; इसलिये वे सदा सुखी रहते है |

 भगवच्चर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड ८२०


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Ram