Monday 28 January 2013

सद्गुरु -3-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ कृष्ण, प्रतिपदा, सोमवार, वि० स० २०६९

सन्यासियों  और गृहस्थों में आज भी अनेक अच्छे साधक और महात्मा हैं | सच्चे ऋषियों का आज भी अभाव नहीं है, परन्तु वे प्राय: अप्रकट रहते हैं | प्रकट रहनेवालो को पहचानना भी बड़ा कठिन होता है; क्योंकि उनका बाहरी वेष तो कोई विलक्षण होता नहीं, जिससे लोग कुछ अनुमान कर सके |

यह सब होते हुए भी श्रद्धा को मन में पूरा स्थान देते हुए भी, आजकल के समय में बहुत ही सावधानी के आवश्यकता है | आज अवतारों, जगत-गुरुओ, विश्वउपदेशको (वर्ल्ड टीचर्स), सदगुरुओ, ज्ञानियो, योगिराजो और भक्तों की आज देश में हाट लग रही है | ऐसे कई  व्यक्तिओ के नाम तो यह लेखक ही जानता है, जिनकी खुल्लमखुल्ला अवतार कहकर पूजा की जाती है और उसको स्वीकार करते है | पता नहीं ईश्वर के कितने अवतार एक साथ ही देश में कैसे हो गये? आश्चर्य तो यह है कि एक अवतार दुसरे अवतार को मानने के लिए तैयार ही नहीं है | ऐसी स्तिथी में ये अवतार वास्तव में क्या वस्तु है ? इस बात को प्रत्येक विचारशील पुरुष सोच सकते हैं | गुरु तो गाँव-गाँव और गली-गली में मिल सकते है, सब कुछ गुरुचरणों में अर्पण करने मात्र से ही ईश्वरप्राप्ति की गैरंटी देने वाले गुरुओ की कमी नहीं है; ऐसे हजारो नहीं, लाखों गुरु होंगे; परन्तु दुःख है कि इन गुरुओ की जमात से उद्धार शायद ही किसी का होता है |

सद्गुरु तो  वह है जो शिष्य के मन का अनन्त कोटिजन्म-संचित अज्ञान हरण करता है, जो शिष्यों को सन्मार्ग पर लगाता है , जो उसके हृदय में परमात्मा के प्रति सच्चे प्रेम के भावो का विकास करवा देता है | जो अपनी नही, परन्तु परमात्मा की सर्वव्यापी सर्वभूत स्थित परमात्मा की पूजा का पाठ पढ़ता है, जो शिष्य को यथार्थ में दैवी सम्पति के गुणों से विभूषित देखना चाहता है, जो निरन्तरइस प्रयत्न में लगा रहता है कि शिष्य किसी प्रकार से भी कुमार्ग में न जाने पावे , जो पद-पद पर उसे सावधान करता है और कुपथ्य से बचाता है, जो त्याग और सदाचार सिखाता है, जो निर्भय होकर विश्वरूप भगवान की सेवा करना बतलाता है, जो स्वयं अमानी होकर शिष्य को मान रहित होना और स्वयं काम,क्रोध,लोभ से छूटकर शिष्य को उनसे बचनासिखाता है एवं जो अपने बाहर भीतर के सभी आचरणों को ऐसा स्वाभाविक पवित्र रखता है, जिसका अनुकरण कर शिष्य का हृदय पवित्रतम  बन जाता है | वास्तव में ऐसा ही पुरुष परमात्मा को पा सकता है और दूसरो को भी परमात्मा की प्राप्ति के पथ पर आरूढ़ करवा सकता है |

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवच्चर्चा , पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram