|| श्री हरि:
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, नवमी,
रविवार, वि० स० २०६९
तृष्णा न जीर्णा वयमेव जीर्णा:
जिसकी तृष्णा बढ़ जाती है, वह तो उन्मत हो जाता है |
लगी है प्यास जोरों से ढूँढता हूँ सरोवर को |
सुहाता है नहीं कोई
मुझे अब दूसरा कुछ भी ||
जब इतनी तृष्णा बढती है,तब भगवान का आसन डोल जाता है,
उन्हें आना पडता है वैकुण्ठ छोड़कर उस रूप के प्यासे मतवाले भक्त को अतुल
सौन्दर्य-सुधा पिला कर सदा के लिए तृप्त और संतुष्ट कर देने के लिये | भगवान के इस
मनोहर मिलन से संसार की समस्त ज्वालाये शान्त हो जातीं है, उसकी जन-मनोहर अनोखी
वाणी सुनते है अविद्या की बेड़िया पटापट टूट जाती है, कर्मों का बंधन खुल पढता है |
अमावस्या की घोर निशा शरद-पूर्णिमा के अमृत भरे प्रकाश के रूप में परिणत हो जाती
है |
धन, मान, कुल, विद्या और वर्ण का सारा अभिमान उस प्रियतम के प्रेम की बाढ़ में
बह जाता है – माया का लेंन देन चुक जाता है | उसके लिए दरवाजा खुल जाता है, उस
सर्वर्त्र अबाधित परमात्मा के परम धाम का | उसके लिए कोई भी अपना-पराया नही रह
जाता, सर्वत्र केवल उस एक का अपार विस्तार | ऐसी स्तिथि में वह उसी में अनुरक्त,
उसी में तृप्त और उसी में संतुस्ट रहता है | उसके लिए फिर कोई भी कर्तव्य शेष नही रह जाता - ‘तस्य कार्यं न विधते |’
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद
पोद्धार,कल्याण अंक,वर्ष ८६,संख्या ३,पृष्ट-संख्या ५७६,गीताप्रेस, गोरखपुर
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