Tuesday, 22 January 2013

संत-वाणी -२-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष शुक्ल, एकादशी ,मंगलवार, वि० स० २०६९


संत-वाणी

१.    जहाँ ईश्वर की चर्चा होती है, वही स्वर्ग हैं | जहाँ विषयों की चर्चा होती है वही नरक है |

२.    ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य के प्रयत्न से कुछ भी नहीं मिल सकता |

३.    ईश्वर के गुणों को अपने में आरोप करने वाला योगी अधम है |

४.    संत वही है जिसे कोई भी विषय मलिन नही कर पाता, बल्कि मलिनता भी उसे छूकर पवित्र हो जाती है |

५.    या तो जैसे बाहर से दिखाते हो वैसे ही भीतर से बनो, नहीं तो जैसे भीतर हो वैसे ही बाहर से दिखाओ |

६.    मनुष्य ज्यों-ज्यों संसारी परदों से ढकता जाता है, त्यों-ही-त्यों वह  प्रभु की पूजा और साधन छोड़ता जाता है |

७.    अन्तकरण में एक भण्डार है, उस भण्डार में एक रत्न है, वह रत्न है प्रभु-प्रेम इस रत्न को पाने वाला ही ऋषि है |

८.    हे प्रभु ! तेरे सिवा मेरा कोई नहीं, तू मेरा है तो फिर सब कुछ मेरा है |

९.    त्याग तप है | त्याग के बिना न तेज है, न संस्कार है , न शान्ति है , न प्रसन्नता है , न आनंद है और न मुक्ति ही है | त्याग करो घर का नहीं, स्त्री-पुत्रो का नहीं , मन की विविध कामनाओ का, दुसरे को सुख देने वाले स्वाभाव का, आलस्य का, अभिमान का, अशक्ति का, ममता का और अहंकार का |    


श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद पोद्धार,संत-वाणी, गीताप्रेस, गोरखपुर

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Ram