आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण १४,वीरवार, वि० स० २०६९
5.
भक्त किसी ने
द्वेष नहीं करता या किसी पर क्रोध नहीं करता | किससे करे ? किस पर करे ? सारा जगत
तो उसे स्वामी का स्वरुप दीखता है | शिव जी महाराज कहते है –
उमा
जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध
निज
प्रभुमय देखहि जगत केहि सन करही विरोध ||
भक्त विनय, नम्रता और प्रेम की मूर्ति होता है
|
6.
भक्त किसी वस्तु
की कामना नहीं करता,उसे वह वस्तु प्राप्त है जिसके सामने सब कुछ तुच्छ है,तब वह
किसकी कामना करे और क्यों करे ? वस्तुत: प्रेम में कोई कामना रहती ही नहीं | प्रेम
में देना है, वहाँ लेने का कोई नाम ही नहीं है | यही काम और प्रेम का बड़ा भरी भेद
है | काम में प्रेमास्पद के द्वारा अपने सुख की चाह है और प्रेम में अपने द्वारा
प्रेमास्पद को सुखी बनाने की उत्कट इच्छा है | उसके लिए वही सबसे बड़ा सुख है,
जिससे उसके प्रेमास्पद को सुख मिले, चाहे वह अपने लिये कितने ही भयानक कष्ट का
कारण हो | प्रेमास्पद के सुख को देख कर प्रेमी की भयानक पीड़ा तुरंत महान सुख के
रूप में परिणत हो जाती है | अतएव भगवान का भक्त कभी कामी नहीं होता, वह तो चातक
की भांति मेघ रूप भगवान की ओर सदा एकटक दृष्टि से निहारा करता है | बादल यदि न बरसे
या जल के बदले ओले बरसावे, तो भी वह प्रेम के नेम का पक्का पपीहा उधर से मुँह नही
मोड़ता |
रटत
रटत रसना लटी तृषा सूखि गये अंग |
‘तुलसी’
चातक प्रेम को, नित नूतन रूचि रंग ||
बरषि
परुष पाहन पयद, पंख करे टुक टुक |
‘तुलसी’
परी न चाहिये, चतुर चातकहि चूक ||
यही दशा भक्त की है |
भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड
८२०,पन्ना न० १९६
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