आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल,प्रतिपदा, शनिवार, वि० स०
२०६९
एक
बार ब्रह्मा जी भगवान के द्वार पर पहुँचे, भगवान ने द्वारपाल के द्वारा उन्हें
पुछवाया कि ‘आप कौन से ब्रह्मा हैं ?’ ब्रह्मा को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ | वे
सोचने लगे कि ‘कहीं ब्रह्मा भी दस-बीस थोड़े ही है |’ उन्होंने कहा,'जाओ कह दो चतुर्मुख ब्रह्मा आये है |’ भगवान ने
उनको अंदर बुलवाया | ब्रह्मा का कौतुहल शान्त नहीं हुआ, उन्होंने पूछा ‘भगवन !
आपने यह कैसे पूछा कि कौन-से ब्रह्मा है ? क्या मेरे अतिरिक्त और भी कोई ब्रह्मा है
?’ भगवान् हँसे, उन्होंने विभिन्न
ब्रह्माण्ड के ब्रह्माओ का आवाहन किया | तत्काल वह वहाँ पर चार से लेकर
हज़ार मुख तक के अनेको ब्रह्मा आ पहुचे | भगवान ने कहा, ‘देखो, ये सभी ब्रह्मा है,
अपने-अपने ब्रह्माण्ड के ब्रह्मा है |’ तब ब्रह्मा जी का संदेह दूर हुआ | ऐसे
ब्रह्माओ के एकमात्र स्वामी जिसके प्राणप्रिय हो, वह भक्त किस वस्तु की कामना करे |
पाँच
सखियाँ थीं, पाँचों श्री कृष्ण की भक्त थी | एक समय वे वन में बैठी फूलों की माला
गूँथ रही थी | उधर से एक साधु आ निकले | साधु को रोककर बालाओ ने कहा – ‘महात्मन !
हमारे प्राणनाथ श्रीकृष्ण वन में कहीं खो
गए है, उन्हें आपने देखा हो तो बतलाईये |’ इस पर साधुने कहा – ‘अरी पगलियो ! कही
श्रीकृष्ण यों मिलते है | उनके लिए घोर तप करना चाहिये | वे राजराजेश्वर है, नाराज़
होते है तो दण्ड देते है और प्रसन्न होते है तो पुरस्कार |’ सखियों ने कहा –
‘महात्मन ! आपके वे श्रीकृष्ण दूसरे होंगे, हमारे श्रीकृष्ण तो राजराजेश्वर नहीं
है, वे तो हमारे प्राणपति है, वे हमे पुरस्कार क्या देते? उनके खजाने की कुंजी तो
हमारे पास रहती है | दण्ड तो वे कभी देते ही नहीं, यदि हम कभी कुपथ्य कर ले और वे
कड़वी दवा पिलावे तो यह तो दण्ड नहीं है,
प्रेम है |’ साधु उनकी बात सुनकर मस्त हो गए | वे अपने श्रीकृष्ण को याद करके
नाचने लगी और साथ ही साधु भी तन्मय होकर नाचने
लगे | यह कथा बहुत लम्बी है, मैंने बहुत संक्षेप में कही है | सारांश यह है ऐसा
भक्त प्रभु से क्या मांगे ? ऐसा भक्त तो निष्काम भाव से नित्य-निरंतर अति प्रेम के
साथ उनका चिन्तन ही करता रहता है |
भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड
८२०,पन्ना न० १९६
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