आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल,द्वितीया, रविवार, वि० स०
२०६९
तुलसीदास
जी ने कहा है –
कामहि
नारी पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम |
तिमि
रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम ||
भक्त
निरंतर अपने भगवान के लिए काम और लोभी की दशा को प्राप्त रहता है | वह कैसे उनको भुलावे ? और कैसे दूसरे विषय के लिए
कामना या लोभ करे?
अतएव भक्त सदा-सर्वदा भगवान के चिन्तन में ही चित को लगाये रखता है | भगवान ने भी
गीता में स्थान-स्थान पर नित्य-निरंतर चिन्तन करने की आज्ञा दी है | आठवे अध्याय
में कहा है –
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |
य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय || (५)
‘जो
मनुष्य मृत्यु के समय मुझको स्मरण करता हुआ शरीर को त्यागकर जाता है, वह मेरे
स्वरुप को ही प्राप्त होता है , इसमें संदेह नहीं है |’ इस पर
लोग सोचते है फिर जीवनभर भगवान का स्मरण
करने की क्या जरुरत है | मरने के समय भगवान को याद कर लेंगे | याद करने मरने पर
भगवत-प्राप्ति का वचन भगवान ने दे ही दिया है | इसी भ्रांत धारणा को दूर करने के
लिए भगवान ने फिर कहा है –
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् |
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावित: || (६)
यह
नियम है कि ‘मनुष्य अन्तकाल में जिस-जिस भाव को स्मरण करता हुआ शरीर छोडकर जाता
है, उसी-उसी को प्राप्त होता है; परन्तु अन्तकाल में भाव वही याद आता है, जिसका
जीवनभर चिन्तन किया गया हो |’
यह नही कि जीवनभर तो मन से धन, मान की रटन लगाते रहे और
अन्तकाल में भगवान की स्मृति अपने-आप ही हो जाये | इसलिये श्रीभगवान ने फिर आज्ञा
की–
तस्मात्सर्वेसु कालेषु मामनुस्मर युध्य च |
मय्यर्पित्मनोबुद्धिर्मामेवैस्य्स संशयं || (७)
‘अतएव हे अर्जुन ! तू सब
समय (निरंतर) मेरा स्मरण करता हुआ ही युद्ध कर | इस प्रकार मुझमे अर्पित
मन-बुद्धि होने से तू निसंदेह मुझको ही
प्राप्त होगा |’ निरंतर स्मरण का महत्व तो देखिये, भगवान ने यही कहकर संतोष नहीं
कर लिया की ‘मुझको प्राप्त होगा’
‘निसंदेह’ (असंशयम) और ‘ही’ (एव) ये दो निश्चय
दृढ करानेवाले शब्द और जोड़े | इतने पर भी हम भगवान का स्मरण न करे तो हमारे समान
मुर्ख और कौन होगा !
भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड
८२०,पन्ना न० १९७
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