Monday, 14 January 2013

भक्त के लक्षण -९-


आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष शुक्ल,तृतीया, सोमवार, वि० स० २०६९

गत ब्लॉग से आगे.........अंत में भगवान सर्वगुह्यतम आज्ञा देते है – ‘तू चिन्ता न कर, एकमात्र मेरी शरण आ जा, मैं तुझे सारे पापो से बचा लूँगा |’ 

तू मुझमें मन को लगा,मेरा भक्त बन,मेरी पूजा कर,मुझे नमस्कार कर,तू मेरा प्रिय है, इससे मैं तुझसे प्रतिज्ञा करके कहता हूँ की ऐसा करने से तू मुझको ही प्राप्त होगा | सारे धर्मो के आश्रयों को छोडकर तू केवल एक मेरी ही शरण में आ जा | मैं तुझको सब पापो से छुड़ा दूंगा | तू चिन्ता न कर |’ (गीता १८ |६५-६६)

इसलिए हमलोगो को नित्य-निरंतर श्रीभगवान का चिन्तन करना चाहिये | भक्तो के और भी अनेकों गुण है, कहाँ तक कहा बखाने जाएँ |

अन्त में एक-दो बाते कीर्तन के सम्बन्ध में निवेदन करता हूँ |याद रखें, ‘कीर्तन बाजारी वस्तु नहीं है |’ यह भक्त की परम आदरणीय प्राण-प्रिय वस्तु है | इसलिये कीर्तन करने वाले इतना ध्यान रखें कि कहीं यह बाजारू लोकमनोरंजन की चीज न बन जाये | इसमें कही दिखलाने का भाव न आ जाये | कीर्तन करने वाला भक्त केवल यह समझे कि ‘बस, मैं केवल अपने भगवान के सामने ही कीर्तन कर रहा हूँ, यहाँ और कोई दूसरा है, इस बात की स्मृति भी उसे न रहे | दो बाते कभी नहीं भूलनी चाहिये | मन में भगवान के स्वरुप का ध्यान और प्रेम भरी वाणी के द्वारा मुख से अपने प्रभु के पवित्र नाम की ध्वनि | ऐसा करते-करते वास्तविक प्रेम की दशाएं प्रगट होंगी और भगवान कहते है कि फिर मेरा भक्त त्रिभुवन को तार देगा |

‘प्रेम से उसकी वाणी गद-गद हो जाती है, चित द्रवीभूत हो जाता है, वह कभी जोर-जोर से रोता है,कभी हँसता है, कभी लज्जा छोड़ कर गाता है, कभी नाचने लगता है, ऐसा मेरा परम भक्त त्रिभुवन को पवित्र कर देता है |’ (श्री मदभागवत ११|१४|२४)

भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड ८२०,पन्ना न० १९७
     
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Ram