|| श्री हरि:
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष शुक्ल, दशमी,
सोमवार, वि० स० २०६९
१. दुर्लभ मनुष्य-चोला पाकर,
वेद-शास्त्र पढ़ कर भी यदि मनुष्य संसार
में फसा रहे तो फिर संसार-बंधन से छुटेगा कौन ?
२. जिसे किसी चीज की जरुरत नहीं, वह
किसी की खुशामद क्यों करेगा ? निस्पृह के लिए तो जगत तिनके के समान है | इसलिए सुख चाहते हो तो इच्छाओं को त्यागो |
३. जो जितना छोटा होता है वह उतना ही
घमण्डी और उछल कर चलने वाला होता है, जो जितना बड़ा और पूरा होता है, वह उतना ही
गम्भीर और निराभिमानी है , नदी-नाले थोड़े से जल से इतर उठते है; किन्तु साग़र, जिसमे
अनंत जल भरा है, गम्भीर रहता है |
४. अभिमान और अहंकार महान अनर्थो का
मूल है –यह नाश की निशानी है |
५. हे मनुष्य ! मौत से डर, अभिमान
त्याग |
६. मनुष्य के घमण्ड का क्या ठिकाना –
किसी को कुछ नहीं समझता | मौत ने इसे लाचार कर रखा है, नही तो यह ईश्वर को भी कुछ नहीं समझता |
७. हे मनुष्य ! जोश में आकर इतना
जोश-खरोश न दिखा; इस दुनिया में बहुत से दरिया चढ़-चढ़ कर उतर गये – कितने ही बाग़
लगे और सूख गये |
८. जल में डूबा बच जाता है पर विषयों
में डूबा नहीं बचता |
९. स्त्री साँप से भी भयंकर है | साँप
के काटने से मनुष्य मरता हैं, पर स्त्री के रूप-चिंतन मात्र से ही मनुष्य मर जाता
है |
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद
पोद्धार,संत-वाणी, गीताप्रेस, गोरखपुर
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