Monday, 21 January 2013

संत-वाणी -१-





|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष शुक्ल, दशमी, सोमवार, वि० स० २०६९


संत-वाणी

१.    दुर्लभ मनुष्य-चोला पाकर, वेद-शास्त्र पढ़ कर  भी यदि मनुष्य संसार में फसा रहे तो फिर संसार-बंधन से छुटेगा कौन ?

२.    जिसे किसी चीज की जरुरत नहीं, वह किसी की खुशामद क्यों करेगा ? निस्पृह के लिए तो जगत तिनके के समान है | इसलिए सुख चाहते हो तो इच्छाओं को त्यागो |

३.    जो जितना छोटा होता है वह उतना ही घमण्डी और उछल कर चलने वाला होता है, जो जितना बड़ा और पूरा होता है, वह उतना ही गम्भीर और निराभिमानी है , नदी-नाले थोड़े से जल से इतर उठते है; किन्तु साग़र, जिसमे अनंत जल भरा है, गम्भीर रहता है |

४.    अभिमान और अहंकार महान अनर्थो का मूल है –यह नाश की निशानी है |

५.    हे मनुष्य ! मौत से डर, अभिमान त्याग |

६.    मनुष्य के घमण्ड का क्या ठिकाना – किसी को कुछ नहीं समझता | मौत ने इसे लाचार कर रखा है, नही तो यह ईश्वर को भी कुछ नहीं समझता |

७.    हे मनुष्य ! जोश में आकर इतना जोश-खरोश न दिखा; इस दुनिया में बहुत से दरिया चढ़-चढ़ कर उतर गये – कितने ही बाग़ लगे और सूख गये |

८.    जल में डूबा बच जाता है पर विषयों में डूबा नहीं बचता |

९.    स्त्री साँप से भी भयंकर है | साँप के काटने से मनुष्य मरता हैं, पर स्त्री के रूप-चिंतन मात्र से ही मनुष्य मर जाता है |   

   

श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसाद पोद्धार,संत-वाणी, गीताप्रेस, गोरखपुर

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Ram