Saturday, 5 January 2013

दैवी विपतियाँ और उनसे बचने का उपाय -४


                                                आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ८, शनिवार, वि० स० २०६९

बात भी यही है की हमारे पास विद्या,बुद्धि,तन,मन,धन, जो कुछ है, सब भगवान् की धरोहर है, उनकी चीज है | उनको जहा जिस वस्तु की आवस्यकता हो वहां उस वास्तु को आदर पूर्वक प्रसन्न मन से समर्पण कर देना ही हमारा धर्म है | जहाँ आकाल है, वहां वे अन्न मागते है; जहा सूखा है वह जल चाहते है | जहाँ बाढ़ में सब कुछ बह गया वहां वे –अन्न-वस्त्र  और आश्रय चाहते है | ऐसी अवस्था में हमारे पास उनका जो कुछ भी हो, तुरंत देकर उनकी प्रसन्नता प्राप्त करनी चाहिये | उन्ही की चीज से उनकी सेवा करनी चाहिये | इस प्रकार जो भगवान की पूजा के भाव से दुखी जीवो की सहायता करता है, उसे मुनिजन दुर्लभ साक्षात् भगवान की या भगवान के प्रेम की प्राप्ति होती है और बुधिमानो को इसी भाव से सेवा करनी चाहिये | जो अपनी क्रिया का उच्चे-से ऊँचे फल प्राप्त कर सके, वही तो बुद्धिमान है |
यहाँ पर एक प्रश्न होता है की तब क्या संसार में दैवी संकटों का आना किसी प्रकार रूक नहीं सकता ? इसका उतर यह है की जब तक संसार है, तब तक इनका सर्वथा नष्ट होना तो असम्भव है, परन्तु ये कम जरुर हो सकते है | जिस काल में दैवी संकंट कम होते है, उसी को सत्ययुग कहते है  और उसका कारण है हमारे अपने कर्म | महर्षिओ ने कहा है की ‘जब देश, नगर और ग्रामो के शाशक तथा उनकी देखा-देखि प्रजाजन अधर्म में रत हो जाते है, काम, क्रोध, लोभ और अभिमान के वश होकर असत्य, हिंसा, चोरी और व्यभिचार, शिष्टो का अपमान और शास्त्र की अवेहलना करने लगते है , तब देवता उनकी रक्षा न करके उनहे त्याग देते है | इसी से ठीक समय पर वर्षा नहीं होती, होती है तो कही अनावृष्टि और कही अतिवृष्टि | वायु ठीक नहीं बहता, भूमि विकारयुक्त हो जाती है, जल सूख जाता है, औसध अपना स्वभाव छोड़ देते है  | लोभ और वृद्धि के कारण परस्पर भयानक युद्ध छिड जाते है, लोगो की आजीविका नष्ट हो जाती है, भूकम्प,व्रजपात और जल प्रलय आरभ हो जाते है  | धर्मविहीन मनुष्य धर्मभ्रष्ट  होकर गुरु, वृद्ध, सिद्ध, ऋषि और पूज्यो का अपमान करके  अहित साधन करते है और अंत में उन गुरुओ के अभिशाप से भस्म हो जाते है |’  सच पूछिए तो आजकल यही हो रहा है ऐसे संकट से बचने के लिए शास्त्रों में जो उपाय बतलाये गए है उनका साररूप निम्नलिखित दस बाते है :-

1.   सत्य का पालन |
2.   दुखी प्राणियों पर दया |
3.   तन,मन,धन से सात्विक दान |
4.   देवताओ की यथा विधि पूजा |
5.   सदाचरण |
6.   ब्रह्मचर्य पालन |
7.   शास्त्र और जितात्मा महर्षिओ की आज्ञा पालन |
8.   धर्मात्मा और सात्विक पुरुषो का संग |
9.   गौ सेवा, गायो केलिए गोचर भूमि की व्यवस्था करना |
10.               भगवान के नाम रुपी मंत्रो के द्वारा आत्मरक्षा |

  भगवचर्चा,हनुमानप्रसाद पोद्दार,गीताप्रेस,गोरखपुर,कोड ८२०, पन्ना न० २६२-२६३


 
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Ram