आज की शुभ तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ९, रविवार, वि० स० २०६९
भगवान को भक्तो का बड़ा महत्व
है | वे जगत के लिए आदर्श होते है; क्योकि भगवद्भक्ति के प्रताप से उनमे दुर्लभ दैवी गुण अनिवार्यरूप से प्रकट
हो जाते है, जो उनके लिए स्वाभाविक लक्षण होते है | भक्त का स्वरुप जानने के लिये उन
लक्षणों का जानना आवश्यक है | उनमे से कुछ ये है -
१.
भक्त अज्ञानी नहीं
होता , वह भगवान के प्रभाव , गुण, रहस्य को तत्व से जानने वाला होता है | प्रेम के
लिए ज्ञान की बड़ी आवश्यकता है | किसी न किसी अंश में जाने बिना उससे प्रेम नहीं हो
सकता और प्रेम होने पर ही उसका गुह्तम यथार्थ रहस्य जाना जाता है | भक्त भगवान के
गुह्तम रहस्य को जानता है, इसलिए भगवान के प्रति उसका प्रेम उतरोतर बढ़ता ही रहता
है | भगवान रससार है | उपनिषद भगवान को ‘रसो वै स:’ कहते है | इस प्रेम में भी
द्वैत नहीं भासता ! प्रेम की प्रबलता से
ही राधा जी कृष्ण बन जाती है और श्री कृष्ण राधा जी | कबीर साहब कहते है –
जब
में था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नायँ |
प्रेम-गली
अति साँकरी, यामे दो न समायँ ||
वस्तुत:
ज्ञानी और भक्त की स्तिथी में कोई अन्तर नहीं होता | भेद इतना ही है, ज्ञानी ‘
सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ कहता है और भक्त ‘वासुदेव: सर्वमिति’ अथवा
गोसाइजी की भाषा में वह कहता है –
सिय राममय सब जग जानी | करहु प्रनाम जोरि जग पानी ||
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