Friday, 22 February 2013

उन्नति का स्वरुप -1-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
माघ शुक्ल द्वादशी, शुक्रवार, वि० स० २०६९


वर्तमान जगत में कोने-कोने से उन्नति की आवाज आ रही है | चारों और उन्नति की चर्चा है | सभी क्षेत्रों में लोग उन्नति करना चाहते है | कहा जाता है कि इस बीसवीं शताब्दी के उन्नति युग में जो देश, जाति, सम्प्रदाय, समाज या व्यक्ति उन्नति की दौड़ में पीछे रह जायेगा, वह नितान्त ही पुरुषार्थहीन समझा जायेगा | इसलिए आज सभी मुटठी बाँधकर उन्नति के मैदान में मानो बाजी रखकर दौड़ लगा रहे है और उन्नति-उन्नति की पुकार मचा रहे है |

लोगो के कथानानुसार उन्नति हो भी रही है, जगह-जगह उन्नति या उत्थान के विविध उदाहरण भी उपस्थित किये जाते है | यूरोप जंगली था, आज सुसभ्य और परम उन्नत हैं, उसकी धाक सारे संसार पर जमी हुई है | जापान कुछ समय पूर्व अवनति के गर्त में गड रहा था, आज धन-जन-समाज से परिपूर्ण है | अमेरिका की उन्नति का तो कहना ही क्या ! संसार के सभी राष्ट्र आज धन के लिए उसी की और सतृष्ण दृष्टि से ताक रहे है | टर्की ने मस्जिदों की नीलामी इश्तहार निकाल कर, अरबी-लिपि का बहिष्कार कर, औरतों के चेहरे से बुरका हटा कर और खलीफा के पद को पददलित कर बड़ी भारी उन्नति कर ली | अफगानिस्तान तो उन्नति के लिए अपना बलिदान ही दे रहा था |’ भारत भी उन्नति में किसी-से पीछे क्यों रहेगा ? मील-महल, टेलीफोन-रेडियो, मोटर-विमान, कॉलेज-बोर्डिंग, होटल-उपहारगृह, प्रेस-पत्र, और नाटक-सिनेमा आदि सभी उन्नत सभ्य-समाजके सामान मौजूद है | सब तरह की आजादी पाने के लिए सर्वत्र क्रांतिशुरू हो गयी है | सभा-समाज और वक्ता-उपदेशक अपना-अपना काम कर रहे है | पूरी उन्नति अभी नहीं हुई तो क्या हुआ, कार्यक्रम जारी रहा तो वह दिन भी दूर नहीं समझना चाहिये | बस दौड़ते रहो, बढ़ते रहो, खबरदार ! कोई पिछड़ न जाये | साराश यह है की आज अखिल विश्व का आकाश उन्नति के घने मेघो से अच्छादित है |.
...शेष अगले ब्लॉग में

 श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

If You Enjoyed This Post Please Take 5 Seconds To Share It.

0 comments :

Ram