Monday 4 February 2013

सद्गुरु -10-


|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ कृष्ण,नवमी,सोमवार, वि० स० २०६९

यह भक्ति के साधक की बात है, प्रेमी भक्त के लक्षण तो भगवान इस प्रकार बतलाते है

जो किसी भी प्राणी से द्वेष नहीं करता, जो बिना किसी भेद भाव के दुखी जीवो पर सदा दया करता है, जो परमात्मा के सिवा किसी भी वस्तु में ‘मै’ पने को त्याग देता है, जो सुख-दुःख दोनों में परमात्मा को सम्भव से देखता है, जो अपना बुरा मानने वाले को भी भगवान से भला मानता है ,जो लाभ-हानि, जय-पराजय, सफलता-विफलता में सदा संतुस्ट रहता है, जो अपने मन को परमात्मा में लगाये रखता है ,जो मन इन्द्रियों को जीत चुका है, जो परमात्मा में या अपने ध्येय में दृढ निश्चय रखता है, जो अपने मन बुद्धि को परमात्मा के अर्पण कर देता है, जो किसी के भी उद्वेगका कारण नहीं बनता, जो किसी भी उद्वेग को प्राप्त नहीं होता, जो संसारिक वस्तुओ की प्राप्ति में कोई आनंद नहीं मानता, जो दुसरे की उन्नति देखकर नहीं जलता, जो सदा सर्वत्र निर्भय रहता है, जो किसी भी स्तिथि में उद्विग्न नहीं होता, जो किसी भी वास्तु की आकांक्षा नहीं करता, जो बाहर-भीतर से सदा पवित्र रहता है, जो भगवान की भक्ति करने और अपने दोषों को त्याग करने में दक्ष है,जो पक्षपात रहित है,जो किसी भी अवस्था में व्यथित नहीं होता, जो सब कर्मो का आरम्भ परमात्मा की लीला से ही होता है-ऐसा मानता है,जो भोगो को पाकर फूलता नहीं, जो भोगो के नाश हो जाने पर रोता नहीं,जो अप्राप्त या नष्ट भोगो क पुन: प्राप्त करने की इच्छा नहीं करता,जो शुभा-शुभकर्मो का फल नहीं चाहता, जो शत्रु-मित्र में समभाव रखता है, जो मान-आपमान को एक-सा समझता है, जो सर्दी-गर्मी में सम रहता है, जो सुख-दुःख को समान समझता है, जो किसी भी वस्तु में आसक्ति नहीं रखता, जो निन्दा-स्तुति को समान समझता है ,जो पर्मता की चर्चा के सिवा दूसरी बात नहीं करना चाहता,जो परमात्मा के प्रेम में मस्त होकर अपनी स्तिथि से सतुस्ट रहता है, जो घरद्वार में ममता नही रखता,जो अपनी बुद्धि को परमात्मा में स्थिर कर देता है, जो भागवत-धर्म रुपी अमृत का सदा सेवन करता है, जो परमात्मा में पूर्ण श्रद्धा-सम्पन्न है और जो केवल परमात्मा के परायण है | (गीता १२ |१३ से २०) ऐसा पुरुष ही वास्तव में भक्त है |          

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय  भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवच्चर्चा, पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram