Thursday 21 February 2013

दुःख में भगवतकृपा -13-


।। श्रीहरि: ।।
आज की शुभ तिथि पंचांग
माघ  शुक्ल,एकादशी, गुरूवार, वि० स० २०६९

 ते नर नरकरूप जीवत जग । भाव-भंजन-पद-विमुख अभागी ।

इसलिए वे अभागे है, उनके जीवन नरकरूप है । संसार के इन प्रलोभनीय वस्तुओं को दे देना, इनमे लगा देना, इनमे आकर्षण उत्पन्न कर देना, उनकी महत्ता बता देना हितकर नहीं है, अत: उचित नहीं है । यह तो उनके साथ बैर करना है । जिसके पास ये सामग्रियाँ है, उनको भी इनकी बुराईयां बता देनी चाहिये ।

भगवानकी कृपा का आश्रय करें और भगवान की कृपा जब जिस रूप में आये, स्वागत करे । यदि वह कृपा हमारा मान भंग करनेवाली हो, इज्जत मिटाने वाली हो, जगत से सम्पर्क हटाने वाली हो, तब यह समझना चाहिये की भगवान का सान्निध्य प्राप्त होने वाला है । यह संसार का नियम है कि जगत तभी तक पकड़ता है, जबतक उससे कुछ मिलता रहे । बूढ़े माता-पिता को भी लोग कहते है, भगवान सुन लें तो अच्छा है, अर्थात ये चल बसे, तो सुख रहे । जगत के भोग किसी के नहीं है । किसी का यथार्थ प्रेम नहीं हैं, जो हमारा अपना स्वरुप है, जो सदा हमारे साथ है, इस शरीर के नष्ट होने पर जो हमारे साथ रहेगा, उसी में सुख है ।  ये धन, कीर्ति और मान का सुख तो उधार लिया मिथ्या सुख है, हम इन्हें सुख का स्वरुप समझ लेते है । यह हमारी भूल है, ये न तो सुख है और न ये सदा रहते ही है । साधक को चाहिये कि वह निरन्तर भोगों से मन को हटाता रहें, भोग हमारे शत्रु है, यह भाव मन में बार-बार भरता रहे और प्रेममय- आनन्दमय  भगवान में मन लगाता रहे ।

इसके लिए पूरा प्रयत्न करे । भोगों का नाश हो तो दु:खी न होकर परम सौभाग्य माने, उसमे सहज सुहृद श्रीभगवान की कृपा का अनुभव करें । भगवान हमारे नित्य सुहृद हैं । वे कभी अकृपा करना जानते ही नहीं । मलेरिया होने पर डॉक्टर ने कडुवी दवा दे दी, हम मानते है कि यह हमारे लाभ के लिए है । इसी प्रकार अवश्यक होने पर भगवान हमे कडुवी दवा देंगे ।  डॉक्टर के द्वारा हमारे हित के लिए किये जाने वाले अंगछेद (आपरेशन) की भाँती आवश्यकता होने पर वे हमारा अंग भी काट सकते है, पर उससे हमारा लाभ ही होगा । हमारे भयानक दुखदायी रोग-दोष और हमारी बीमारी दूर करने के लिए भगवान हम पर कृपा कर रहे है, यह समझना चाहिये । भगवान की कृपा समझकर निरन्तर उनका  नाम लेता रहे और आपना जीवन भगवान की इच्छा के अनुकूल बनावे । भगवान हमारा सारा कार्य करते है, वे नित्य हमरा  हित ही करते रहे है और आगे भी करते रहेंगे, यह विश्वास रखे तो हम निहाल हो जाएँगे ।

हरि: ॐ तत्सत


नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड  ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर

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Ram