।। श्रीहरि: ।।
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ शुक्ल,एकादशी, गुरूवार,
वि० स० २०६९
ते नर
नरकरूप जीवत जग । भाव-भंजन-पद-विमुख अभागी ।
इसलिए वे
अभागे है,
उनके जीवन नरकरूप है । संसार के इन प्रलोभनीय वस्तुओं को दे देना,
इनमे लगा देना, इनमे आकर्षण उत्पन्न कर देना,
उनकी महत्ता बता देना हितकर नहीं है, अत: उचित नहीं है । यह
तो उनके साथ बैर करना है । जिसके पास ये सामग्रियाँ है,
उनको भी इनकी बुराईयां बता देनी चाहिये ।
भगवानकी
कृपा का आश्रय करें और भगवान की कृपा जब जिस रूप में आये, स्वागत करे । यदि वह कृपा हमारा मान
भंग करनेवाली हो, इज्जत
मिटाने वाली हो, जगत से सम्पर्क हटाने वाली हो, तब यह समझना चाहिये की भगवान का सान्निध्य प्राप्त होने वाला है
। यह संसार का नियम है कि जगत तभी तक पकड़ता है, जबतक
उससे कुछ मिलता रहे । बूढ़े माता-पिता को भी लोग कहते है, भगवान
सुन लें तो अच्छा है, अर्थात ये चल बसे, तो सुख रहे । जगत के भोग किसी के नहीं है
। किसी का यथार्थ प्रेम नहीं हैं, जो हमारा अपना स्वरुप है,
जो सदा हमारे साथ है, इस शरीर के नष्ट होने पर
जो हमारे साथ रहेगा, उसी में सुख है । ये धन, कीर्ति और मान का सुख तो उधार लिया मिथ्या
सुख है, हम इन्हें सुख का स्वरुप समझ लेते है । यह हमारी भूल
है, ये न तो सुख है और न ये सदा रहते ही है । साधक को चाहिये कि वह निरन्तर भोगों से मन को हटाता रहें, भोग हमारे शत्रु है, यह
भाव मन में बार-बार भरता रहे और प्रेममय- आनन्दमय भगवान
में मन लगाता रहे ।
इसके लिए
पूरा प्रयत्न करे । भोगों का नाश हो तो दु:खी न होकर परम सौभाग्य माने,
उसमे सहज सुहृद श्रीभगवान की कृपा का अनुभव करें । भगवान हमारे नित्य
सुहृद हैं । वे कभी अकृपा करना जानते ही नहीं । मलेरिया होने पर डॉक्टर
ने कडुवी दवा दे दी, हम मानते है कि यह हमारे लाभ के लिए है ।
इसी प्रकार अवश्यक होने पर भगवान हमे कडुवी दवा देंगे । डॉक्टर के द्वारा हमारे हित के लिए किये जाने वाले अंगछेद (आपरेशन) की
भाँती आवश्यकता होने पर वे हमारा अंग भी काट सकते है, पर
उससे हमारा लाभ ही होगा । हमारे भयानक दुखदायी रोग-दोष और हमारी बीमारी दूर करने
के लिए भगवान हम पर कृपा कर रहे है, यह समझना चाहिये । भगवान की कृपा समझकर
निरन्तर उनका नाम लेता रहे और आपना जीवन भगवान की इच्छा के अनुकूल
बनावे । भगवान हमारा सारा कार्य करते है, वे नित्य हमरा हित ही करते रहे है और आगे भी करते रहेंगे, यह
विश्वास रखे तो हम निहाल हो जाएँगे ।
।
हरि: ॐ तत्सत ।
नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण
नारायण नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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