Sunday, 10 February 2013

दुःख में भगवतकृपा -2-


|| श्री हरि:||
आज की शुभ तिथि पंचांग
माघ  कृष्ण, मौनी अमावस्या, रविवार, वि० स० २०६९


श्रीमद् -भागवत में आया है -
बलि की शक्ति बढ़ी | बलि विश्वविजयी हो गये | देवताओं की शक्ति क्षीण हो गयी | देवता भयभीत होकर छिप गये | बलिका प्रतापसूर्य सम्पूर्ण विश्व पर छा गया | बलि भगवान के भक्त थे | वे भगवान की कृपा मानते थे | पर बलि के मन में भी अपने इस विषय का अहंकार तो आया ही | उसमे निमित चाहे जो कुछ  भी बना हो,पर भगवान ने कृपा की | बलिका सारा राज्य हरण कर लिया, बलि का सारा ऐश्वर्य अपहरण कर लिया | उक्त प्रसंग में यह प्रश्न हो सकता है कि बलि के साथ भगवान ने ऐसा क्यों किया ? स्पष्ट उत्तर है कि भगवान ने बलि पर कृपा करने के लिए ऐसा किया | भगवान ने उनपर यह कृपा किस लिए की ? दयामय भगवान ने उनपर कृपावृष्टि इसलिए की,कि बलिको जो अपने राज्यका, विजयका अंहकार हो गया था | उनका मोह इस प्रकार बढ़ता रहता तो पता नहीं बलि क्या कर बैठते भगवान को भूल कर | बलि कुछ क्र न बैठें, बलि का ऐश्वर्य-विजय-मद न रहे, बलि भगवान की ओर लग जाये, इसलिए भगवान ने कृपा की, पर सचमुच भगवान ने उनपर बड़ी कृपा की |

बलि के पितामह भक्तराज प्रहलाद ने वहाँ भगवान की स्तुति करते हुए कहा  प्रभो ! आपने बलिको ऐश्वर्यपूर्ण इन्द्रतव दिया था | आज आपने उसे छीनकर इस पर बड़ी कृपा की है | आपकी कृपा से आज यह आत्मा को मोहित करनेवाली राज्यश्री से अलग हो गया है | लक्ष्मी के मद से बड़े-बड़े विद्वान मोहित हो जाते है | ऐसी लक्ष्मी को छीनकर महान उपकार करने वाले, समस्त लोको के महेश्वर, सबके अन्तर्यामी तथा सबके साक्षी आप श्री नारायण देव को मैं नमस्कार करता हूँ |’ (भागवत ८|२२)
   
शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

 नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड  ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर

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Ram