|| श्री हरि:||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ कृष्ण, मौनी अमावस्या, रविवार,
वि० स० २०६९
श्रीमद् -भागवत में आया है -
बलि की शक्ति बढ़ी | बलि
विश्वविजयी हो गये | देवताओं की शक्ति क्षीण हो गयी | देवता भयभीत होकर छिप गये | बलिका
प्रतापसूर्य सम्पूर्ण विश्व पर छा गया | बलि भगवान
के भक्त थे | वे भगवान की कृपा मानते थे | पर बलि के मन में भी अपने इस विषय का अहंकार तो आया ही | उसमे निमित चाहे जो कुछ भी बना हो,पर भगवान ने कृपा की | बलिका सारा
राज्य हरण कर लिया, बलि का सारा ऐश्वर्य अपहरण कर लिया | उक्त प्रसंग में यह प्रश्न हो सकता है कि बलि के साथ भगवान ने ऐसा क्यों
किया ? स्पष्ट उत्तर है कि भगवान ने बलि पर कृपा करने के लिए
ऐसा किया | भगवान ने उनपर यह कृपा किस लिए की ? दयामय भगवान ने उनपर कृपावृष्टि इसलिए की,कि बलिको जो अपने राज्यका, विजयका अंहकार हो गया था | उनका मोह
इस प्रकार बढ़ता रहता तो पता नहीं बलि क्या कर बैठते भगवान को भूल कर | बलि कुछ क्र न बैठें, बलि का
ऐश्वर्य-विजय-मद न रहे, बलि भगवान
की ओर लग जाये, इसलिए भगवान ने कृपा की, पर सचमुच भगवान ने उनपर बड़ी कृपा की |
बलि के पितामह भक्तराज प्रहलाद ने वहाँ भगवान की स्तुति करते हुए कहा ‘प्रभो ! आपने बलिको ऐश्वर्यपूर्ण इन्द्रतव
दिया था |
आज आपने उसे छीनकर इस पर बड़ी कृपा की है | आपकी कृपा से आज यह आत्मा को मोहित करनेवाली राज्यश्री
से अलग हो गया है | लक्ष्मी
के मद से बड़े-बड़े विद्वान मोहित हो जाते है | ऐसी लक्ष्मी को छीनकर महान उपकार करने वाले, समस्त लोको के महेश्वर, सबके अन्तर्यामी तथा सबके साक्षी आप श्री नारायण देव को
मैं नमस्कार करता हूँ |’ (भागवत ८|२२)
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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