|| श्री हरि:
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
१९.ऐसे
करो,जैसे घर में रहने वाली कुलटा स्त्री अपने जार का स्मरण करती है |
२०. ऐसे
करो, जैसे मातृपरायण शिशु माता का स्मरण करता
है |
२१. ऐसे
करो, जैसे प्रेमी अपने प्रेमास्पद का स्मरण करता है |
२२. ऐसे
करो, जैसे पतिव्रता स्त्री अपने पति का स्मरण करती है |
२३. ऐसे
करो, जैसे अन्धकार से अकुलाये हुए प्राणी प्रकाश का स्मरण करते है |
२४. ऐसे
करो, जैसे सर्दी से कापते हुए मनुष्य अग्नि का स्मरण करते है |
२५. ऐसे
करो, जैसे चकवा-चकवी सूर्य का स्मरण करते
है |
२६. ऐसे
करो, जैसे चातक मेघ का स्मरण करता है |
२७. ऐसे
करो, जैसे जल से बिछुड़ी हुई मछली जल का स्मरण करती है |
२८. ऐसे
करो, जैसे चकोर चन्द्रमा स्मरण करता है |
२९. ऐसे
करो, जैसे फलकामी पुरुष फल का स्मरण करता है
|
३०. ऐसे
करो, जैसे मुमुक्षु पुरुष आत्मा का स्मरण करता
है |
३१. ऐसे
करो, जैसे शुद्ध हृदय मुमुक्षु पुरुष भगवान का स्मरण करता है |
३२. ऐसे
करो, जैसे योगी पुरुष चेतन ज्योति का स्मरण करते है |
३३. ऐसे
करो, जैसे ब्रह्म निष्ठ ब्रह्म का स्मरण करता है |
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, भगवच्चर्चा, पुस्तक कोड ८२०
गीताप्रेस, गोरखपुर
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