|| श्री हरि:||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
जब भगवान किसी पर कृपा करते है, तब उसके ऐश्वर्य का विनाश
कर देते हैं | एक बार तो वह दुखी हो जाता है | इसी प्रकार जिसके सम्मान की वृद्धि
हो जाती है, भगवान उसका अपमान करवा देते है, लज्जित कर देते है, जिससे वह मान-की माया से
छूटकर भगवान की ओर बढे | जितनी भी इस प्रकार की लीलाये होती है, सबमे भगवान
की कृपा ही हेतु है | जो बढ़ रहा है, वह
भगवान को मानेगा ही क्यों ? जबतक जगत में सफलता होती है, तब तक मनुष्य
बुद्धि का अभिमान करता ही है और इसलिये भगवान तथा धर्म दोनों ही उससे दूर हो जाते
है | वह मोहवश अपने लिए असम्भव और अकर्तव्य कुछ भी नहीं मानता | ‘मैं चाहे जो कर
सकता हूँ, कौन बोलने वाला है | किसकी जगत में शक्ति है जो मेरी उन्नति में बाधा दे
सके |’ यों वह बकने लगता है, पर भगवान की कृपा से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है,
जो उसकी सारी सफलताओ को चूर्ण कर देती है | तब वह
फिर भगवान की ओर देखता है | जब तक मनुष्य को संसार का आश्रय मिला है, तब तक
वह भगवान की ओर ताकता भी नहीं | जब तक उसकी प्रसंशा करनेवाले, उसे आश्रय देने
वाले, उसकी बुरी अवस्था में भी कुछ भी मित्र, बंधू-बान्धव रहते हैं, तबतक वह उन्ही
की ओर देखता है | द्रौपदी के चीर-हरण का प्रसंग देखिये | भगवान की ओर उसने तबतक
नहीं देखा, तबतक उसने भगवान को नहीं पुकारा, जब तक उसे तनिक भी किसी की आशा बनी
रही, वह उनकी ओर देखती रही | उसने पाण्ड्वो की ओर देखा, द्रोंण की और देखा, विदुर
की ओर देखा और देखा पितामह भीष्म की ओर | उसे आशा थी, ये मुझे बचा लेंगे, किन्तु
जब सब और से निराश हो गयी, उसे कहीं किंचित भी आश्रय नहीं रह गया, तब उसने निराश्रय
के आश्रय और निर्बल के बल भगवान का स्मरण किया और भगवान को आते कितनी देर लगती है
| जहाँ अनन्यभाव से करुण आवाहन हुआ की वे भक्तवत्सल प्रभु दौड़ पड़े |
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड
५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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