|| श्री हरि:
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आज की शुभ
तिथि – पंचांग
एक बहुत बड़े धनी हैं, मानी हैं, उनके साथ बैठने को मिल जाय,
वे अपने साथ बैठा ले, कितनी प्रसन्नता होती है | यश जो बढ़ता है, और कही वे हमारे घर
आ जाये, तब तो ‘ओं हो हो ! कितने भाग्यवान है हम | इतने बड़े आदमी हमारे घर आये |’
यह बड़ाई पाने को रोग है | मान पाना, बड़ाई पाना, यश पाना, धन पाना, आराम पाना-कुछ
भी, जहाँ पानेकी इच्छा है और जहाँ पूरी
होती है वह हम सब चाहते है, वहाँ हम सब जाते है | और जहाँ यह पाने की इच्छा पूरी न
हो, कुछ देना पड़े, चाहे मान का ही त्याग करना पड़े, कुछ बदनामी मिले, वहाँ से आदमी
हट जाते है, कहता है यहाँ मेरा क्या काम है | फिर जगतवाले सब अलग हो जायेंगे, जब
उनको पाने की कोई आशा नही रह जाएगी | अपने घर के प्राणप्रिय व्यक्तिओ के मन में भी,
जिनके लिए लोग प्राण देते रहते थे, ऐसी बात आ जाती है | पिता कमाते थे उनसे कुछ
मिलता था | बड़े पूज्य थे, पर जब उनसे मिलने की आशा नही रहती, सेवा-सुश्रुषा करनी
पड़ती है, तब पुत्र भी सोचने लगता है -‘अब तो ये वृद्ध हो गए | बड़ा कष्ट है इन्हें’,
दुसरे शब्दों में ‘ये मर जाये तो अच्छा है |’ अपने परिवालो को जाने दीजिये, अपना
ही शरीर दो-चार वर्ष रुग्ण रह जाता है, औषधि खाने पर भी अच्छा नहीं होता है, तो
निराशा हो जाती है और मन में आता है की शरीर छूट जाये तो अच्छा हो | साथ रहने वाले
मित्र,जिससे उन बेचारो का यह रोग- धन-मद
नष्ट हो जाये | उनको आँखे मिल जाये और वे भगवान को प्राप्त करे | जड़ता रूप इस कड़ी
दवा के साथ श्रीनारदजी ने उनको मधुरतम
दुर्लभ आशीष भी दिया की ‘वृक्षयोनी प्राप्त होने पर भी मेरी कृपा से इन्हें भगवान
की स्मृति बनी रहेगी और देवताओ के सौ वर्ष बीतने पर इन्हें भगवान श्रीकृष्ण का
सानिध्य प्राप्त होगा, तब इनकी जड़ता दूर हो जाएगी | इन्हें भगवतचरणों का प्रेम
प्राप्त होगा | ये कृतार्थ हो जायेगे |’
शेष अगले ब्लॉग में ...
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड
५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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