Saturday, 16 February 2013

दुःख में भगवतकृपा -8-


|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ  शुक्ल,षष्ठी, शनिवार, वि० स० २०६९


यह मानभंग, यह ऐश्वर्य-नाश आदि भगवान की बड़ी कृपा से होता है | यदि कोई धन का होकर रह जाता है, तो भगवान चाहते है की वह धन का न होकर हमारा होकर  रहे | उसका धन, ऐश्वर्य आदि सब कुछ ले लेते है | भगवान तो चाहते है उसे अपनाना | वे उसे अपनी गोद में लेना चाहते है | पर जब तक जगत उसे अपनाए है, तब तक वह ऐसा मोह में रहता है की मानो सारा जगत ही हमारा है | तब तक उसे भ्रम रहता है की मानो सारा जगत ही हमसे प्यार करता है | वह जगत में चारो और आशा लगाये रहता है | उसम फूलकर वह भगवान को भूल जाता है | उसमे जगत का प्रेम, जगत की ममता, जगत का बंधन प्रगाढ़ और विस्तृत होता जाता है | भगवान उसे दिखाते है की तुम्हारे साथ प्रेम करनेवाला, तुम्हे अपना मानने वाला, तुम्हे आश्रय देने वाला मेरे अतिरिक्त कोई स्थती, कोई अवस्था, कोई प्राणी और कोई सम्बन्धी है ही नहीं | ये सब धोखे की चीज मान ले इसके लिए भगवान ऐसी स्तथी उत्पन्न करते है | जैसे हम आपसे प्रेम करते है, आपके लिए प्राण देने की बात करते है, पर कही आप पर कोई लान्छन्न लग जाए, आपका कोई पाप प्रगट हो जाये, जगत आपसे घ्रणा करने लगे, आपके पास बैठने में लोक-लज्जा का अनुभव होने लगे, उस समय हम आपके पास नहीं बैठ सकेंगे | उस समय बड़ा-सुन्दर तर्क देते हुए हम कह देंगे  अंदर से हम लोगो का प्रेम तो बना ही है, पर बाहर प्रगट करके अपयश लेने से क्या लाभ ?’ कल जो उसकी बड़ाई में, उसके यश में, उसके सुख में हर समय हिस्सा ले रहे थे; आज वह बुरा आदमी माना गया है, इसलिए उसे अपना स्वीकार नहीं करते | उनका प्रेम, ममत्व , अपनत्व कहाँ चला गया ? मनुष्य पाप करता है, पर क्या वह अपने से घ्रणा करता है | श्रीनारदजी ने प्रेम का स्वरुप बताया, ‘गुणरहितम’, ‘कामनारहितम |’ प्रेम गुणरहित और कामनारहित होता है | प्रेम गुण और वस्तु की अपेक्षा नहीं करता |                    

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड  ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram