|| श्री हरि:
||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
माघ
कृष्ण,षष्ठी,शनिवार, वि० स० २०६९
एक
ज्ञानी बने हुए व्यक्ति ने मुझसे एक दिन कहा था, ‘भाई ! काम-क्रोध तो इन्द्रियो के
धर्म है, जैसे मूत्रत्याग का वेग आता है, ऐसे ही शुक्रत्याग का भी नैसर्गिक वेग
आता है | जब वह वेग आवे, तब किसी भी स्त्री के प्रति उस वेग का निवारण कर ले, इससे
ज्ञान में क्या हानि होती है? इन्द्रियों का धर्म तो इन्द्रियों में रहेगा ही |’
एक भक्त ने एक सज्जन से कहा था, ‘भाई ! चलो वृन्दावन में रहो, वह जाकर चोरी,
व्यभिचार भले ही करो, कोई हर्ज नहीं है, वहा रहने मात्र से ही उद्धार हो जायेगा |’
सम्भव है, यह उनकी शुद्ध भावना हो, परन्तु ऐसे विचार और भावनाओं ने ज्ञान और भक्ति
को कलंकित अवश्य ही कर दिया है |विचारसागर के दो-चार दोहे याद करने या
श्रीराम-कृष्ण के नाम पर दम्भ में दो-चार बूँद आँसू बहा देने से ही ज्ञानी या भक्त
नहीं हुआ जाता | ज्ञानी और भक्त बनना बहुत ही टेडी खीर है | ब्रह्मज्ञान की
तीक्ष्णधार तलवार से जो आसक्ति और वासना
का समूलछेदन कर डालता है, वह ज्ञानी हो सकता है |और जो भगवत-प्रेम की धधकती हुई
अग्नि में कूद कर अहंकारसहित अपना सर्वस्व फूक डालता है, वह भक्त बन सकता है |
ज्ञानी और भक्त होकर दैवी सम्पति के गुणों से शून्य रहना वैसे ही असम्भव है जैसे
मध्यान्हसूर्य के प्रचण्ड प्रकाश से खुले मैदान में अन्धकार का रहना |
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नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी
पोद्दार, भगवच्चर्चा, पुस्तक कोड ८२०
गीताप्रेस, गोरखपुर
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