Sunday, 17 February 2013

दुःख में भगवतकृपा -9-


|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ  शुक्ल,सप्तमी,रविवार, वि० स० २०६९


सच बात तो यह है कि भोगासक्त संसारवालो का प्रेम है ही नहीं, सच्चे प्रेमी तो प्रभु है, जो गुण नहीं देखते और कामना तो उनके मन में है ही नहीं | भगवान का प्रेम ही असली प्रेम है | अतएव भगवान को छोड़ जो भोग में मन लगता है, सो बड़े दुर्भाग्य की बात है | मजे की बात तो यह है कि जगत में जिन लोगोंके पास जगत की कुछ वस्तुएँ है, वे अपने को भाग्यवान मानते है और मूर्खतावश और लोग भी उन्हें ‘भाग्यवान’ कहते है | किन्तु एक फ़क़ीर, जिसके पास जगत की कोई वस्तु नहीं है और जिनकी उसे कामना भी नहीं है तथा जो अपनी स्थीती में भगवान का स्मरण करते हुए सर्वथा निश्चिन्त और मस्त है, उसे लोग गरीब या अभागा कहते है  और कह देते है  ‘बेचारे को सुख कहाँ ?’ पर जो पदार्थ हमे भगवान से दूर कर दे और जो नरकानल में दग्ध करने में सहायक हो, उस पदार्थजनित भाग्यशीलता के लिए क्या कहा जाये ? गोस्वामी श्री तुलसीदास जी ने कहा है :~

सुनहु उमा ते लोग अभागी | हरी तजि होंही विषय अनुरागी ||

श्री शिवजी कहते है ‘वे अभागे है, भाग्य फूटा है उनका जो भगवान को छोड़कर विषयों से प्रेम करते है |’ सौभाग्यवान कौन है ? जो सबको छोड़ कर भगवान की सेवा में लग जाता है | भरत जी ने लक्ष्मण के भाग्य की सराहना करते हुए कहा था :~


अहह धन्य लछिमन बडभागी | राम पदारबिंदु अनुरागी ||       

लक्ष्मण के समान कौन बडभागी है, जिसका श्रीराम के चरणों में अनुराग है | श्री तुलसीदास जी ने कहा है :~

रमा बिलास राम अनुरागी | तजत बमन जिमि जन बडभागी ||

‘रमा के वैभव को जो रामानुरागी जन वमन वे समान त्याग देते है, वे ही बडभागी है |’ भोगरूप से तो लक्ष्मी अलक्ष्मी के रूप में दुर्भाग्य के रूप में - ही रहती है |  उस दुर्भाग्य के रूप को दूर करने के लिए भगवान कृपा करते है और कृपा करके हमने जिसे सौभाग्य मान रखा है, उसको हर लेते है |

शेष अगले ब्लॉग में ...

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....


नित्यलीलालीन श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, दुःख में भगवत्कृपा, पुस्तक कोड  ५१४, गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram