|| श्री हरि:
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आज की शुभ
तिथि – पंचांग
भगवान के मंदिर की यात्रा करने से, उनकी उत्सवमूर्ती का
अनुगमन करने से तथा प्रेमपूर्वक पददक्षिणा करने से दोनों चरणों की शुद्धि होती है
| भगवान की पूजा के लिये पक,पुष्प,गन्ध आदि का संग्रह करना दोनों हाथ की
सर्वश्रेष्ठ शुद्धि है | भगवान के नाम और गुणों का प्रेम पूर्वक कीर्तन करना वाणी
की शुद्धि है | भगवान की लीला-कथा आदि का श्रवण दोनों कानो की शुद्धि है और उनके
उत्सव का दर्शन नेत्रों की शुद्धि है | भगवान के सामने झुकना तथा उनका चरणोदक
लेना, निर्माल्य आदि का धारण करना सर की शुद्धि है | भगवान के प्रसाद-स्वरुप
निर्माल्य, पुष्प,गन्ध आदि को सूघना दोनों नाको की शुद्धि है | भगवान के
प्रसादस्वरुप जो कुछ होता है, व तीनो लोको को शुद्ध कर सकता है | ललाट में गदा,
सिर में धनुष और बाण, हृदयमें नन्दक, दोनों हाथो में शंख-चक्र का चिन्ह करके जो
निवास करता है वह कभी असुद्ध नहीं होता, उसकी कभी दुर्गति नहीं होती | इस द्वादश
शुद्धि को जानकर जो इसका अनुष्ठान करते है, उन्हें भगवान की प्रसन्नता प्राप्त
होती है |
नारायण नारायण
नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण
नारायण....
नित्यलीलालीन श्रधेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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