Wednesday, 6 February 2013

वैष्णवों की द्वादश-शुद्धि


|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ  शुक्ल, एकादशी, बुधवार, वि० स० २०६९


भगवान के मंदिर की यात्रा करने से, उनकी उत्सवमूर्ती का अनुगमन करने से तथा प्रेमपूर्वक पददक्षिणा करने से दोनों चरणों की शुद्धि होती है | भगवान की पूजा के लिये पक,पुष्प,गन्ध आदि का संग्रह करना दोनों हाथ की सर्वश्रेष्ठ शुद्धि है | भगवान के नाम और गुणों का प्रेम पूर्वक कीर्तन करना वाणी की शुद्धि है | भगवान की लीला-कथा आदि का श्रवण दोनों कानो की शुद्धि है और उनके उत्सव का दर्शन नेत्रों की शुद्धि है | भगवान के सामने झुकना तथा उनका चरणोदक लेना, निर्माल्य आदि का धारण करना सर की शुद्धि है | भगवान के प्रसाद-स्वरुप निर्माल्य, पुष्प,गन्ध आदि को सूघना दोनों नाको की शुद्धि है | भगवान के प्रसादस्वरुप जो कुछ होता है, व तीनो लोको को शुद्ध कर सकता है | ललाट में गदा, सिर में धनुष और बाण, हृदयमें नन्दक, दोनों हाथो में शंख-चक्र का चिन्ह करके जो निवास करता है वह कभी असुद्ध नहीं होता, उसकी कभी दुर्गति नहीं होती | इस द्वादश शुद्धि को जानकर जो इसका अनुष्ठान करते है, उन्हें भगवान की प्रसन्नता प्राप्त होती है |          

नारायण नारायण नारायण.. नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

नित्यलीलालीन श्रधेय भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार, भगवत्चर्चा, पुस्तक कोड  ८२० गीताप्रेस, गोरखपुर
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Ram