|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, प्रतिपदा, मंगलवार, वि० स० २०६९
आजकल बहुधा यह बात देखने में आती
है कि पति को अपने कर्तव्य का ध्यान तो रहता नहीं , परन्तु वह पत्नी को सीता और
सावित्री के आदर्श पर सोलहों आने प्रतिष्ठत देखने की इच्छा रखता है | स्त्री हो या
पुरुष दोनों को अपने-अपने कर्तव्य का ज्ञान और उसके पालन का पूर्णत: ध्यान रहना
चाहिये | जो मनुष्य अपने धर्म को नहीं देखता, स्वयं धर्म पर आरूढ़ नहीं रहना चाहता
और दुसरे को, विशेषत: अपनी पत्नी को धर्म पर पूर्णतया आरूढ़ न देखकर अथवा उसके
स्वधर्म-पालन में तनिक भी न्यूनता देखकर झल्ला उठता है, उसकी झल्लाहट व्यर्थ है |
उससे कोई अच्छा फल नहीं होता |
यदि पुरुष चाहता है, नारियां सीता और सावित्री बने तो उसे
सर्वप्रथम अपनेको ही श्रीरामचन्द्र और सत्यवान के आदर्श पर चलना चाहिये |
स्त्रियाँ अपने धर्म का पालन करे यह बहुत आवश्यक है; परन्तु पुरुषों के लिए भी तो
धर्म का पालन कम आवश्यक नहीं है | मैंने सुना है, कई बहिनों के पत्रोंसे भी मालूम
होता है की कितने ही पुरुष अपनी स्त्रियों को इसलिए मारते और गालीयां देते है के
वे उनकी इच्छा के अनुसार नीच-से-नीच पाप कर्म करने के लिए उद्धयत नहीं होती और इस
प्रकार अपने पतिव्रता होने का परिचय नहीं देती | आधुनिक सभ्यता में पले हुए कितने
ही पुरुषों का यहाँ तक पतन सुना गया है की वे अपनी पत्नी से वेश्यावृति तक कराना
चाहते है | एक विधवा बहिन का कहना है की उनके देवर ने उन्हें फुसलाकर सादे कागज पर
उनकी सही ले लीं और अब वह उनकी न्य्यायोचित
सम्पति को भी हड़प लेना चाहता है | ये एक-दो बाते उदाहरण के तौर पर कही गयी
है | ऐसी घटनाये न जाने कितनी होती होंगी | पुरुषो का अत्याचार बेहद बढ़ गया है |
वे अपने दोषों की और तो कभी दृष्टि ही नहीं डालते; परन्तु पत्नी निर्दोष हो तोभी
उनके दोष-ही-दोष दीखाई पढ़ते है |
इसका तात्पर्य यह नहीं की स्त्री के दोषों की उपेक्षा की
जाए | यदि स्त्री में वस्तुत: दोष है तो पति अथवा गुरुजनों का यह धर्म हो जाता है
की वे उसे समझा कर, समझाने से न माने तो उसके हित के लिए समुचित दण्ड देकर भी राह
पर लावे | अवश्य ही यह बात किसी राग-द्वेष या पक्षपात आदि के कारण नहीं होनी
चाहिये | ....शेष
अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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