Wednesday 13 March 2013

पति का धर्म -2-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

 फाल्गुन शुक्ल, द्वितीया, बुधवार, वि० स० २०६९

 
गत ब्लॉग से आगे.....किन्तु जहाँ पत्नी आदर्श देवी है, वह भारतीय आदर्श के अनुसार स्वधर्म पालन में लगी हुई है, वहाँ आधुनिकता के रंग में रँगे हुए पति महोदय यदि उसे धर्म के विरुद्ध कुछ करने की आज्ञा देते है और उसको न करने पर उसे पति की आज्ञा न मानने के कारण ‘पतिव्रता’ नहीं मानते तो यह उनका अन्याय है | उनकी दृष्टि में तो पत्नी का ‘निर्दोष’ होना ही ‘दोष’ बन गया |   

वास्तव में दोष तो उस पुरुष का ही है तो स्वयं पत्नी के सम्मुख परमात्मा बन कर बैठा है, उसकी न्यायसंगत सम्मति की विरुद्ध उससे अपनी पूजा करवाना और अनुचित बातों में उसका सहयोग प्राप्त करना चाहता है | उसे क्या हक है की पर-पुरुषों के सामने नाचने-गाने को कहे और वह न नाचे-गाये तो उसे पतिव्रता न समझे | उसे क्या हक है की वह पत्नी को शराब पिला कर सिनेमा ले जाना चाहे और वह हाथ जोड़ कर क्षमा मांगे तो उलटे उस देवी पर नाराज़ हो, उसे सती धर्म से गिरी हुई करार दे ? पति को परमेश्वर समझ कर उसकी सेवा करे, अवश्य ही यह स्त्री का धर्म है; परन्तु पति का यह धर्म नहीं की वह अपने को परमेश्वर बता कर उससे कहे की ‘तुम मुझे उचित-अनुचित जैसा भी मैं कहूँ, पूजों |’ यह तो किसी के धर्म से अनुचित लाभ उठाना है | जो स्त्री अपने पति को शराब छोड़ने, तम्बाकू त्यागने, सिनेमा न देखने और झूठ  न बोलने की सलाह देती है, वही उसकी सच्ची हितेष्णनि है | वही वास्तव में सहधर्मिणी और पति का मंगल चाहने वाली है | यह उसका उपदेश नहीं सत्परामर्श है और इसका उसे सनातन अधिकार है | जिसे ऐसी सुशीला और सद्गुणवती पत्नी प्राप्त हो, उसे अपने सोभाग्य पर गर्व होना चाहिये और परमात्मा का कृतघन होन चाहिये |पति कभी ऐसा मानने की भूल न करे की ‘पत्नी पाँव की जूती है, उसका आदर करना सिर चढ़ाना है |’ जो ऐसे सोचता है, वह अपने कर्तव्य से च्युत हो जाता है | जो पति पत्नी की बिमारी में उसकी सेवा करने में अपना अपमान समझता है, दुःख में उसका साथ नहीं देता, वह वस्तुत: कर्तव्यविमुख और धर्मभ्रष्ट है | पति स्वयं सदाचारी, मिस्टभाषी, एकपत्नीव्रती, अपनी ही पत्नी में अनुराग रखने वाला तथा उसके साथ मित्रवत सच्चा प्रेम एवं सदव्यवहार करने वाला बने | ऐसा करके ही वह पत्नी के ह्रदय को जीत सकता है |            

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram