|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण दशमी, गुरूवार, वि०
स० २०६९
गत ब्लॉग से आगे.....जब इधर भोजन की तयारी हो रही थी, तब तक शंकर विष्णु
के साथ चलकर आश्रम के एक सुंदर भवन में गए और वहाँ एक सुकोमल शय्या पर लेटकर बहुत
देर तक प्रेमालाप करते रहे | इसके अनन्तर वे आश्रम-भूमि में स्तिथ एक सुरम्य तडाग
पर जाकर वहाँ जलक्रीडा करने लगे | रंगीले भोले बाबा भगवान श्री हरी के पध्दलायत
लोचनों पर कमल-किन्जिल्क्मिश्रित जल अंजली के द्वारा फेकने लगे | भगवान ने उनके प्रहार
को न सह सकने के कारण अपने दोनों नेत्र मूद लिए | इतने में भोलेबाबा मौका पाकर
तुरंत उछल कर भगवान के वृष-सद्र्श गोल-गोल सुडौल मांसल कंधो पर आरुढ़ हो गए |
वृषभारोहण का तो उन्हें अभ्यास ही ठहरा, ऊपरसे जोर से दबाकर उन्हें कभी तो पानी के
अन्दर ले जाये और कभी ऊपर ले आये | इस प्रकार जब उन्हें बहुत तंग किया गया, तब
विष्णु भगवान ने भी एक चाल खेली | उन्होंने तुरन्त भगवान शिवजी को पानी में दे
मारा | शिवजी ने भी नीचेसे ही भगवान की दोनों टाँगे पकड़कर उन्हें गिरा दिया | इस
प्रकार कुछ देर तक दोनों में पैतरेबाजी और दाव-पेंच चलते रहे | विमानस्तिथ देवगण
अन्तरिक्ष से इस अपूर्व आनन्द को लूटने लगे | धन्य है वे आँख जिन्होंने उस अद्भूत
छटा का निरिक्षण किया |
दैवयोग से नारदजी उधर आ निकले | वे
इस अलौकिक द्रश्यको देखकर मस्त हो गए और लगे वीणा के स्वर के साथ गाने | शंकर उनके
सुमधुर संगीत को सुनकर, खेल छोड़ जल से बाहर आ गए और भीगे वस्त्र पहने ही नारद के
सुर में सुर मिलकर राग अलापने लगे | अब तो भगवान विष्णु से भी न रहा गया | वे भी
बाहर आकर मृदंग बजाने लगे | उस समय वह समां बंधा जो देखते ही बनता था | सहस्त्रो
शेष और शारदा भी उस समय के आनन्द का वर्णन नहीं कर सकती | बूढ़े ब्रह्मा जी भी उस
अनोखी मस्ती में शामिल हो गए | उस अपूर्व समाज में यदि किसी बात की कमी थी तो वह
प्रसिद्द संगीतकोविद पवनसुत हनुमान के आने से पूरी हो गयी | उन्होंने जहाँ अपनी
ह्रदयहारिणी तान छेड़ी वहाँ सबको बरबस चुप हो जाना पड़ा | अब तो सब के सब ऐसे मस्त
हो गए की खान-पान तक की सुधि भूल गये | उन्हें यह भी होश नहीं रहा ही हमलोग यहाँ
महर्षि गौतम के यहाँ निमन्त्रित है |.....शेष
अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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