|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण, सोमवती अमावस्या, सोमवार, वि० स० २०६९
भक्त की परख, छापा, माला, कंठी,
रामनामी, मुंडन या जटा से नहीं होता | ये सब आवश्यक है, उत्तम है, परन्तु इनसे
उन्ही की शोभा बढती है जिसका ह्रदय श्रीभगवान के प्रेम से पूर्ण हो गया है | जिसके
ह्रदय में भगवान की जगह भोगों ने घर कर रखा है, उनको न तो यह भक्तो का बना धारण
करने का अधिकार है और न इससे कोई लाभ ही है, उपर का भेष देख कर किसी ने भक्त मान
भी लिया तो क्या हुआ ? भेषधारी को इससे कोई लाभ नहीं | कंगाल को लखपति मानने से
कंगाली नहीं छूट सकती | ह्रदय पाप की आग से जलता ही रहेगा | भक्त वह है जो अपने
भगवान को देखता है और उसके दिव्य गुण
सत्य, प्रेम, करुणा, आनन्द, ज्ञान आदि का अनुसरण प्राणपनसे करता है | बाना हो या न
हो |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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