Monday, 11 March 2013

भक्त की परख


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

 फाल्गुन कृष्ण, सोमवती अमावस्या, सोमवार, वि० स० २०६९


 भक्त की परख, छापा, माला, कंठी, रामनामी, मुंडन या जटा से नहीं होता | ये सब आवश्यक है, उत्तम है, परन्तु इनसे उन्ही की शोभा बढती है जिसका ह्रदय श्रीभगवान के प्रेम से पूर्ण हो गया है | जिसके ह्रदय में भगवान की जगह भोगों ने घर कर रखा है, उनको न तो यह भक्तो का बना धारण करने का अधिकार है और न इससे कोई लाभ ही है, उपर का भेष देख कर किसी ने भक्त मान भी लिया तो क्या हुआ ? भेषधारी को इससे कोई लाभ नहीं | कंगाल को लखपति मानने से कंगाली नहीं छूट सकती | ह्रदय पाप की आग से जलता ही रहेगा | भक्त वह है जो अपने भगवान को देखता है  और उसके दिव्य गुण सत्य, प्रेम, करुणा, आनन्द, ज्ञान आदि का अनुसरण प्राणपनसे करता है | बाना हो या न हो |  

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram