|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल, षष्ठी, रविवार, वि० स० २०६९
भारतवर्ष
आज गरीबों का देश है | करोड़ों नर-नारी ऐसे है, जिनको भर पेट अन्न और लज्जा-निवारण
के लिये पर्याप्त वस्त्र नहीं मिलता | ऐसी दशा में जो संपन्न भारतवासी, इन गरीब
भाइयो के दुःखकी कुछ भी परवा न करके अपने शरीर और परिवार को आराम पहुचाने में
व्यस्त रहते है, उन्हें कुछ विचार करना चाहिये | शास्त्रों में यज्ञसे बचे हुए अन्न को अमृत
बतलाया हैं और वैसे अमृतरूप पवित्र अन्न
पर जीवन-धारण करने वाले को ब्रह्म की प्राप्ति होती है, ऐसा कहा है | मेरी समझ में
इन भूखे भाइयों और बहिनों के पेट में जो क्षुधा का दावानल धधक रहा है, उसी में
अन्न की आहुति देनी चाहिये, तभी हमारा शेष अन्न अमृत होगा | मतलब यह की हम जो कुछ
भी उपार्जन करे; उसमे से कुछ भाग इन गरीब भाहियों के हितार्थ पहले व्यय करे, तभी
हमारा उपार्जन सार्थक है |....शेष अगले ब्लॉग में |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
0 comments :
Post a Comment