Monday, 18 March 2013

यज्ञ -२-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

 फाल्गुन शुक्ल, सप्तमी, सोमवार, वि० स० २०६९


गत ब्लॉग से आगे....एक घर में दो भाई भूखों मरे और एक भाई खूब माल उडावे | दो बहिनों को कपडा न मिले और एक बहिन रेशमी साड़ियों से संदूक भरी रखे, यह बहुत ही लज्जा की बात है | उचित तो यह है की हमलोग स्वयं कष्ट भोग कर कष्ट में पड़े हुए भाई-बहिनों को कष्ट से बचावे, दुःख सहकर इन्हें सुख दे | परन्तु यह बात तो दूर की है | हम तो आज अपने सुख के लिए इन्हें दुःख पंहुचा रहे है, अपने आराम के लिए इन्हें संकट में डाल रहे है | यदि इनकों भी अपने जैसे मनुष्य समझ कर अपने ही समान इन्हें भी आराम पहुचाने का ख्याल रखे तो इनका बहुत सा कष्ट दूर हो सकता है | हमारे मौज-शौक की सामग्री और अनाप-शनाप खाने-पीने के खर्च में कुछ कमी करके उनसे बचे हुए पैसे इन गरीब भाईयो की सेवा में लगा दिए करें तो बिना ही प्रयास इनके दुख कम हो सकते है और हमारी अनेक बुरी आदते सहज ही छूट सकती है | अपने आराम के लिए प्रत्येक क्रिया करते समय हम इन्हें स्मरण कर लिया करे और पहले इनके लिए कुछ देकर फिर क्रिया आरम्भ करे तो हमारी वही क्रिया यज्ञरूप हो सकती है | भारत में इस यज्ञ की अभी बड़ी आवश्यकता है |    

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram