Tuesday 19 March 2013

भगवत प्रेम -१-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

 फाल्गुन शुक्ल,  सप्तमी, मंगलवार, वि० स० २०६९

 
जो लोग भगवान की खोज में निकलते है, जिन्हें भगवान से मिलने की अत्यन्त उत्कंठा  होती है, वे राह में बड़े भारी इन्द्रिय-सुखों को देखकर रूकते नहीं और महान दुखों को देखकर घबडाते नहीं | वे तो अटल  धैर्यके साथ बिना दूसरी और ताके चुपचाप अपनी राह में चले ही जाते है |

जो सुख पाकर उनमें रम जाते है और दुखों से घबड़ाकर आगे बढ़ना छोड़ देते हैं, वे भगवान के लिए वास्तवमें आतुर नहीं है | सच्ची बात यह है की संसारिक दुखों से बचने और संसारिक सुखों के खोज के लिए ही वे निकले है, भगवान के लिए नहीं |

जिनको भगवान की लगन लग जाती है, वे तो उसीके लिए मतवाले हो जाते है, उन्हें दूसरी चर्चा सुहाती नहीं, विषय-सुख की तो बात ही क्या है, वे ब्रह्मा के पद को भी नहीं चाहते | शेष अगले ब्लॉग में ....  

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram