|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, चतुर्थी, रविवार, वि०
स० २०७०
किसी का बुरा न चाहों
गत ब्लॉग से आगे... नृरसिंह देव सबके लिए भयानक थे,
परन्तु प्रहलाद के लिए भयानक नहीं थे | फिर, मातरूप तो कैसा भी हो, अपने बच्चे के
लिए कभी भयानक होता ही नहीं, सिंघ्ह्नी का बच्चा अपनी माँ से कभी नहीं डरता | अत:
उनकी गोद में कभी न हटो, उनका आश्रय पकडे रहो | माँ अपना काम आप करेगी, मांगोगे,
उसमे धोखा खाओगे | पता नहीं, कही तुम्हे कहीं राज्य मिलने की बात सोची जा रही हों
और तुम मोहवश कौड़ी ही मांग बैठों | असल में तो तुम्हे मांगेने की बात याद ही क्यों आनी चाहिये ? तुम्हारे मन में आभाव का ही, कमी का ही बोध
क्यों होना चाहिये, जब की तुम त्रिभुव्नेश्वरी अनन्त ऐश्वरमयी माँ की दुलारी संतान
हों ? माँ का सारा खजाना तो तुम्हारा ही है | परन्तु तुम्हे खजाने से भी सरोकार
क्यों होना चाहिये | छोटा बच्चा खजाने और धन-दौअलत को नहीं जानता, वह तो जानता है
केवल माँ की गोद को, माँ के आंचल को और
माँ के दूध भरे स्तनों कोण | बस इससे अधिक उसे और क्या चाहिये | माँ बहुत ही मूल्यवान
वस्तु देकर भी उसे अपने से अलग करना चाहे तब
भी वह अलग नही होगा | वह उस बहुमूल्य वस्तु को-भोग और मोक्ष को तृणवत फेक देगा | परन्तु माँ का पल्ला कभी छोड़ना
नहीं चाहेगा | ऐसी हालत में राजराजेश्वरी सर्वलोकमहेश्वरी परम स्नेहमयी माँ भी उसे
कभी नहीं छोड़ सकती | इसके सिवा शिशु-संतान को और क्या चाहिये ? अतएव तुम भी माँके
छोटे भोले-भाले बच्चे बन जाओ | खबरदार ! कभी माँ के सामने सयाने बनने की कल्पना मन
में भी न आने पाए |... शेष अगले ब्लॉग
में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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