Thursday 18 April 2013

आनंद की लहरें-2-

|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, अष्टमी,  गुरूवारवि० स० २०७०
किसी भी अवस्थामें मनको व्यथित मत होने दो ! याद रखो, परमात्मके यहाँ कभी भूल नहीं होती और न उसका कोई विधान दयासे रहित ही होता है !

परमात्मापर विश्वास रखकर अपनी जीवन-डोरी उसके चरणोंमें सदाके लिए बांध दो, फिर निर्भयता तो तुम्हारे चरणोंकी दासी बन जाएगी !


बीते हुएकी चिन्ता मत करो, जो अब करना है, उसे विचारो और विचारो यही कि बाकीका सारा जीवन केवल उस परमात्माके ही काममें आवे !


धन्य वही है, जिसके जीवनका एक-एक क्षण अपने प्रियतम परमात्माकी अनुकूलतामें बीतता है, चाहे वह अनुकूलता संयोगमें हो या वियोगमें, स्वर्गमें हो या नरकमें, मानमें हो या अपमानमें, मुक्तिमें हो या बन्धनमें !

 सदा अपने हृदयको टटोलते रहो, कहीं उसमें काम, क्रोध, वैर, ईर्ष्या, घृणा, हिंसा, मान और मदरुपी शत्रु घर न कर लें! इनमेंसे जिस किसीको भी देखो, तुरंत मारकर भगा दो ! पर देखना बड़ी बारीक नजरसे सचेत होकर, वे चुपके-से अन्दर आकर छिप जाते हैं और मौका पाकर अपना विकराल रूप प्रकट करते हैं!
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, आनंद की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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Ram