|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, नवमी, शुक्रवार, वि० स० २०७०
आप सभी को श्रीराम नवमी की हार्दिक बधाई राम राम
किसीके भी उपरके आचरणोंको देखकर उसे पापी मत मनो! हो सकता है कि उसपर मिथ्या
ही दोषारोपण किया जाता हो और वह उसको अपने को निर्दोष सिद्ध करनेकी परिस्थितिमें न
हो! अथवा यह भी सम्भव है कि उसने किसी परिस्थितिमें पड़कर अनिच्छासे कोई बुरा कर्म
कर लिया हो, परंतु उसका अन्तः करण तुमसे अधिक पवित्र हो!
मकान मेरा
है, चूनेके एक-एक कणमें मेरापन भरा हुआ
है, उसे बेच दिया, हुण्डी हाथमें आ गयी,इसके बाद मकानमें आग लगी! मैं कहने लगा, 'बड़ा अच्छा
हुआ, रूपये मिल गए!' मेरापन छुटते
ही मकान जलनेका दुःख मिट गया! अब हुण्डीके कागजमें मेरापन है, बड़े भारी मकानसे सारा मेरापन निकलकर जरा-से कागजके टुकड़ेमें आ गया!
अब
हुण्डीकी तरफ कोई ताक नहीं सकता! हुण्डी बेच दी, रुपयोंकी थैली हाथमें आ गयी! इसके
बाद हुण्डीका कागज भले ही फट जाय, जल जाय, कोई चिन्ता नहीं! सारी ममता थैलीमें आ गयी!
अब
उसीकी सम्हाल होती है! इसके बाद रूपये किसी महाजनको दे दिए!
अब चाहे
वे रूपये उसके यहाँसे चोरी चले जायँ, कोई परवाह नहीं!
उसके
खातेमें अपने रूपये जमा होने चाहिए और उस महाजनका फर्म बना रहना चाहिए!
चिन्ता
है तो इसी बातकी है कि वह फर्म कहीं दिवालिया न हो जाय! इस प्रकार जिसमें ममता होती है,उसकी चिन्ता रहती है! यह ममता ही
दुखोंकी जड़ है!
वास्तवमें 'मेरा'
कोई पदार्थ नहीं है! मेरा होता तो साथ जाता! पर शरीर भी साथ नहीं
जाता! झूठे ही 'मेरा' मानकर दु:खोंका बोझ
लादा जाता है! जिसकी चीज़ है, उसे सौंप दो! जगत् के सब पदार्थोंसे मेरापन
हटाकर केवल परमात्माको 'मेरा' बना लो! फिर दु:खोंकी जड़ ही कट जायेगी!
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, आनंद की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
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