|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, अष्टमी, बुधवार, वि० स० २०६९
परिणामवाद
गत ब्लॉग से आगे....एक ही शक्ति विभिन्न नाम-रूपों में
सृष्टी-रचना करती है | इस विभिन्नता का कारण और रहस्य भी उन्ही को ज्ञात है | यों
अनन्त ब्रह्मांडोमें महा शक्ति असंख्य ब्रह्मा, विष्णु, महेश बनी हुई है और अपनी
योगमाया से अपने को आवृतकर आप ही जीवसंज्ञा को प्राप्त है | ईश्वर, जीव, जगत तीनो
आप ही है | भोक्ता, भोग्य और भोग तीनो आप ही है | इन तीनो को अपनेही से निर्माण
करनेवाली, तीनोमें व्याप्त रहने वाली भी आप ही है |
परमात्मरूपा यह महाशक्ति स्वयं
अपरिणामी हैं, परन्तु इन्ही की मायाशक्ति
से सारे परिणाम होते है | यह स्वभाव से ही सत्ता देकर अपनी मायाशक्ति को
क्रीडाशीला अर्थात क्रियाशीला बनाती है, इसलिये इनके शुद्ध विज्ञानानन्दघन नित्य
अविनाशी एकरस परमात्मरूप में कदापि कोई परिवर्तन न होनेपर भी इनमे परिणाम दीखता
है; क्योकि इनकी अपनी शक्ति मायाका विकसित स्वरुप नित्य क्रीडामय होनेके कारण सदा
बदलता ही रहता है और वह मायाशक्ति सदा इन महाशक्ति से अभिन्न रहती है | वह
महाशक्तिकी ही स्व-शक्ति है और शक्तिमान से शक्ति कभी पृथक नहीं हो सकती, चाहे वह
पृथक दीखे भले ही, अतएव शक्तिका परिणाम स्वयमेव ही शक्तिमान पर आरोपित हो जाता है,
इस प्रकार शुद्ध ब्रह्म या महशक्ति में परिणामवाद सिद्ध होता है |... शेष अगले
ब्लॉग में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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