Monday, 22 April 2013

आनन्द की लहरें -6-

|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, एकादशी,  सोमवारवि० स० २०७०

जो लोग भगवन्नामका सहारा लेकर पाप करते हैं! जो नित्य नए पाप करके प्रतिदिन उन्हें नामसे धो डालना चाहते हैं, उन्हें तो नीच समझो ! उनके पाप यमराज भी नहीं धो सकते!


पापोंसे छूटने या भोगोंको पानेके लिए भी भगवन्नामका प्रयोग करना बुद्धिमानी नहीं है! पापका नाश तो प्रायश्चित या फलभोगसे ही हो सकता है ! तुच्छ नाशवान् भोगोंकी  तो परवा ही क्यों करनी चाहिए ? उनके मिलने-न-मिलनेमें लाभ-हानि ही कौन-सी है ?

भगवन्नाम तो प्रियेसे भी प्रियतम वस्तु है! उसका प्रयोग तो केवल उसीके लिये करना चाहिए! 
इस भ्रममें मत रहो कि पाप प्रारब्धसे होते हैं, पाप होते हैं तुम्हारी आसक्तिसे और उनका फल तुम्हें भोगना पड़ेगा ! 

परमात्मापर विश्वास न होनेसे ही विपत्तियोंका, विषयोंके नाशका और मृत्युका भय रहता है एवं तभीतक शोक और मोह रहते हैं ! जिनको उस भयहारी भगवान् में भरोसा है, वे शोकरहित, निर्मोह और नित्य निर्भय हो जाते हैं !


मान चाहनेवाले ही अपमानसे डरा करते हैं ! मानक बोझा मनसे उतरते ही मन हल्का और निडर बन जाता है !
 

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

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Ram