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श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र कृष्ण, द्वादशी, रविवार, वि० स० २०६९
शक्ति और शक्तिमान की अभिन्नता
गत ब्लॉग से आगे.... इन्ही सगुण-निर्गुणरूप भगवान या
भगवती से उपर्युक्त प्रकार से कभी महादेवी रूप के द्वारा, कभी महाशिव के द्वारा,
कभी महाविष्णु के द्वारा, कभी श्रीकृष्ण के द्वारा, कभी श्रीराम के द्वारा सृष्टी
की उत्पति होती है, और यही परमात्मरूपा महाशक्ति पुरुष और नारीरूप में विविध
अवतारों में प्रगट होती है | वस्तुत: यह नारी हैं न पुरुष, और दूसरी दृष्टी में
दोनों ही है | अपने पुरुष रूप अवतारों में स्वयं महाशक्ति ही लीला के लिए उन्ही के
अनुसार रूपों में उनकी पत्नी बन जाती है | ऐसे बहुत से इतिहास मिलते है जिनमे
महाविष्णु ने लक्ष्मी से, श्रीकृष्ण ने राधा से, श्री सदाशिव ने उमा से और श्रीराम
ने सीता से कहा है की हम दोनों सर्वथा अभिन्न है, एकके ही दो रूप है, केवल लीला के
लिए एक के दो रूप बन गए है, वस्तुत: हम दोनों में कोई भी अन्तर नहीं है |
शक्ति की उपासना
यही आदि के तीन युगल उत्पन्न करने
वाली महालक्ष्मी है; इन्ही की शक्ति से ब्रह्मादीदेवता बनते है, जिनसे विश्व की
उत्पत्ति होती है | इन्ही की शक्ति से विष्णु और शिव प्रगट होकर विश्व का पालन और
संघार करते है | दया, क्षमा, निंद्रा, स्मृति, क्षुधा, त्रष्णा, तृप्ति, श्रधा,
भक्ति, धृति, मती, तुस्टी, पुष्टि, शान्ति, कान्ति, लज्जा आदि इन्ही महाशक्तिकी
शक्तियाँ है |
यही गोलोक में श्रीराधा, साकेत में
श्रीसीता, क्षिरोधसागर में लक्ष्मी, दक्षकन्या सती, दुर्गनाशिनी मेनका पुत्री
दुर्गा है | यही वाणी, विद्या, सरस्वती, सावित्री और गायत्री है | यही सूर्य की
प्रभा शक्ति, पूर्णचंद्र की सुधावर्षिणी सोभाशक्ति, अग्नि की दाहिकाशक्ति, वायु की
वहनशक्ति, जल की सीतलशक्ति, धरा की धारणा शक्ति और शस्य की प्रसूतिशक्ति है | यही
तपस्विओ का तप, ब्रह्मचारियों का ब्रह्मतेज, गृहस्थो की सर्वश्रम-आश्र्यता,
वानप्रस्थों की संयमशीलता, संयासिओं का त्याग, महापुरुषो की महता, और मुक्त पुरुष
की मुक्ति है |... शेष अगले ब्लॉग में....
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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