|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, सप्तमी , बुधवार , वि० स० २०७०
'पुत्र , स्त्री और धनसे सच्ची तृप्ति नहीं हो सकती ! यदि होती तो अब तक किसी -न
– किसी योनीमें हो ही जाती! सच्ची तृप्तिका विषय हैं केवल एक परमात्मा, जिसके मिल जानेपर जीव सदाके लिए
तृप्त हो जाता हैं !'
' दुःख
मनुष्यत्वके विकासका साधन हैं ! सच्चे मनुष्यका जीवन दुःख में ही खिल उठता हैं!
सोनेका रंग तापानेपर ही चमकता हैं !
'सर्वत्र परमात्माकी मधुर मूर्ति देखकर
आनंदमें मग्न रहो ; जिसको सब
जगह उसकीमूर्ति दिखती हैं , वह तो स्वयं आनंदस्वरूप ही हैं !
'
'नित्य हँसमुख रहो, मुखको
कभी मलिन न करो, यह निश्चय कर लो कि शोकने तुम्हारे
लिए जगतमें जन्म ही नहीं लिया हैं ! आनंदस्वरूप में
सिवा हँसनेके चिन्ताको स्थान ही कहा हैं !'
शान्ति तो
तुम्हारे अन्दर हैं! कामनारुपी डाकिनीका आवेश उतरा कि शान्तिके दर्शन हुए !
वैराग्य के महामंत्र से कामनाको भगा दो, फिर
देखो सर्वत्र शान्ति की शान्त मूर्ति !
जहाँ सम्पत्ति है, वहीं सुख है, परन्तु सम्पत्तिके भेदसे ही सुखका भी भेद है ! दैवी सम्पत्तिवालोंको परमात्म-सुख है, आसुरीवालोंको आसुरी -सुख और नरकके कीड़ोंको नरक-सुख !
जहाँ सम्पत्ति है, वहीं सुख है, परन्तु सम्पत्तिके भेदसे ही सुखका भी भेद है ! दैवी सम्पत्तिवालोंको परमात्म-सुख है, आसुरीवालोंको आसुरी -सुख और नरकके कीड़ोंको नरक-सुख !
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, आनंद की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण
! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!
नारायण !!!
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