|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र पूर्णिमा, गुरुवार, वि० स० २०७०
भक्त और साधु बनना चाहिये, कहलाना
नहीं चाहिये !
जो कहलानेके लिये भक्त बनना चाहते हैं, वे पापोंसे ठगे
जाते हैं ! ऐसे लोगोंपर सबसे पहला आक्रमण
दम्भका होता है !
भक्ति अपने सुखके लिये हुआ करती है, दुनियाको दिखलानेके लिये नहीं, जहाँ दिखलानेका भाव है, वहाँ कृत्रिमता है !
भगवान् की ओरसे कृत्रिम मनुष्यको कोपका और अकृत्रिमको करुणाका प्रसाद मिलता है l कोपका प्रसाद जलाकर, तपाकर उसे शुद्ध करता है और करुणाका प्रसाद तो उस शुद्ध हुए पुरुषको ही मिलता है!
अपने विरोधीको अनुकूल बनानेका सबसे अच्छा उपाय यही है कि उसके साथ सरल और सच्चा प्रेम करो ! वह तुमसे द्वेष करे, तुम्हारा अनिष्ट करे तब भी तुम तो प्रेम ही करो ! प्रतिहिंसाको स्थान दिया तो जरूर गिर जाओगे !
भक्ति अपने सुखके लिये हुआ करती है, दुनियाको दिखलानेके लिये नहीं, जहाँ दिखलानेका भाव है, वहाँ कृत्रिमता है !
भगवान् की ओरसे कृत्रिम मनुष्यको कोपका और अकृत्रिमको करुणाका प्रसाद मिलता है l कोपका प्रसाद जलाकर, तपाकर उसे शुद्ध करता है और करुणाका प्रसाद तो उस शुद्ध हुए पुरुषको ही मिलता है!
अपने विरोधीको अनुकूल बनानेका सबसे अच्छा उपाय यही है कि उसके साथ सरल और सच्चा प्रेम करो ! वह तुमसे द्वेष करे, तुम्हारा अनिष्ट करे तब भी तुम तो प्रेम ही करो ! प्रतिहिंसाको स्थान दिया तो जरूर गिर जाओगे !
जो भगवान् का भक्त बनना चाहता है, उसे सबसे पहले अपना हृदय शुद्ध करना चाहिये और नित्य एकान्तमें भगवान् से यह कातर प्रार्थना करनी चाहिये कि ‘हे भगवन् ! ऐसी कृपा करो जिससे मेरे हृदयमें तुम्हे हर घड़ी हाजिर देखकर तनिक-सी पापवासना भी उठने और ठहरने न पावे ! तदन्तर उस निर्मल हृदय-देशमें तुम अपना स्थिर आसन जमा लो और मैं पल-पलमें तुम्हे निरख-निरखकर निरतशय आनन्दमें मग्न होता रहूँ !’
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!
नारायण !!!
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