|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, द्वादशी, मंगलवार, वि० स० २०७०
शरीरका नाश होना मृत्यु नहीं है,
मृत्यु है वास्तवमें पापोंकी वासना !
मृत्युको स्वाभाविक बनानेवाला ही सुखसे मर सकता है !
जो आत्माको अमर नहीं जानते वे ही मृत्युसे काँपा करते है !
किसीको गाली न दो, वृथा न बोलो, चुगली न करो, असत्य न बोलो, सदा कम बोलो और प्रत्येक शब्दको सावधानीसे उच्चारण करो !
मृत्युको स्वाभाविक बनानेवाला ही सुखसे मर सकता है !
जो आत्माको अमर नहीं जानते वे ही मृत्युसे काँपा करते है !
किसीको गाली न दो, वृथा न बोलो, चुगली न करो, असत्य न बोलो, सदा कम बोलो और प्रत्येक शब्दको सावधानीसे उच्चारण करो !
दूसरोंकी त्रुटियों और कमजोरियोंको सहन करो, तुममें भी बहुत-सी त्रुटियाँ हैं,जिन्हें दूसरे सहते हैं !
यदि बार-बार आत्मनिरीक्षण न कर सको -- तो कम-से-कम दिनमें दो बार सुबह और शाम अपना अन्तर अवश्य टटोल लिया करो ! तुम्हें पता लगेगा कि दिनभरमें तुम ईश्वरके और जीवोंके प्रति कितने अधिक अपराध करते हो !
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!
नारायण !!!
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