Tuesday, 23 April 2013

आनन्द की लहरें -७ -

|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, द्वादशी,  मंगलवारवि० स० २०७०
 
शरीरका नाश होना मृत्यु नहीं है, मृत्यु है वास्तवमें पापोंकी वासना !

मृत्युको स्वाभाविक बनानेवाला ही सुखसे मर सकता है !

जो आत्माको अमर नहीं जानते वे ही मृत्युसे काँपा करते है !

किसीको गाली न दो, वृथा न बोलो, चुगली न करो, असत्य न बोलो, सदा कम बोलो और प्रत्येक शब्दको सावधानीसे उच्चारण करो ! 

दूसरोंकी त्रुटियों और कमजोरियोंको सहन करो, तुममें भी बहुत-सी त्रुटियाँ हैं,जिन्हें दूसरे सहते हैं ! 
किसीको पापी समझकर मनमें अभिमान न करो कि मैं पुण्यात्मा हूँ ! जीवनमें न मालूम कब कैसा कुअवसर आ जाय और तुम्हें भी उसीकी भाँती पाप करने पड़ें !

यदि बार-बार आत्मनिरीक्षण न कर सको -- तो कम-से-कम दिनमें दो बार सुबह और शाम अपना अन्तर अवश्य टटोल लिया करो ! तुम्हें पता लगेगा कि दिनभरमें तुम ईश्वरके और जीवोंके प्रति कितने अधिक अपराध करते हो !
श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram