Sunday, 21 April 2013

आनन्द की लहरें -५ -



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, दशमीरविवारवि० स० २०७०


भगवानको साथ रखकर काम करनेसे ही पापोंसे रक्षा और कार्यमें सफलता होती है!

वैरी अपना मन ही है, इसे जीतनेकी कोशिश करनी चाहिए ! न्याय और धर्मयुक्त शत्रुको भी अन्याय और अधर्मयुक्त मित्रसे अच्छा समझना चाहिए! 

अपनी स्वतन्त्रता बचानेमें दूसरेको परतन्त्र बनाना सर्वथा अनुचित है!

अगर आप दूसरेको चुपचाप बैठाकर अपनी बात सुनाना और समझाना पसंद करते हैं तो इसी तरह उसकी बात सुननेके लिए आपको भी तयार रहना चाहिए!

 अगर आप दूसरेको सहनशील देखना चाहते हैं तो पहले खुद सहनशील बनिए! 

अगर किसी दूसरेके मनके विरुद्ध कोई कार्य करनेमें आप अपना अधिकार मानते हैं तो उसका भी ऐसा ही समझिये !

अपने मनके विरुद्ध शब्द सुनते ही किसीकी नीयतपर संदेह करना उचित नहीं !

अपने पापोंको देखते रहना और उन्हें प्रकाश कर देना भी पापोंसे छुटनेका एक प्रधान उपाय है! 

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
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Ram