Friday, 17 May 2013

परमार्थ की मन्दाकिनीं -17-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

ज्येष्ठ शुक्ल, अष्टमी, सोमवार, वि० स० २०७०

संतका संग एवं सेवन करें -१-

गत ब्लॉग से आगे ... ९. याद रखो -मनुष्य जीवनकी चरम तथा परम सफलतारूप भगवत प्राप्तिके लिए प्रमुख साधनोंमें एक श्रेष्ठ साधन है – भगवत्प्राप्त पुरुषका, संतका संग, उसका सेवन | संग तथा सेवन का अर्थ ‘साथ रहना’ और ‘शारीरिक सेवा’ करना भी होता है | परन्तु भाव-रहित ह्रदयसे केवल साथ रहने अथवा किन्हीं सांसारिक मनोरथों को मनमें रखकर शारीरिक सेवा करनेसे बहुत ही कम लाभ होता है |

 

याद रखो -संग वही है जिसमें उन संत पुरुषके विचारों, भावों, उपदेशों तथा उनके द्वारा प्राप्त तत्त्व-विचारोंका नित्य मनन होता रहे और सेवन वह है जिसमें इन सबका जीवनमें विकास हो जाए | इसीके लिए सदा सावधान तथा प्रयत्नशील रहना चाहिए |

 

याद रखो -संतका संग-सेवन यदि लौकिक कामनाको लेकर किया जाता है तो वह ऐसा ही है, जैसे अमूल्य हीरे-रत्न को छोडकर कांच की कामना करना | यही नहीं, वस्तुतः सांसारिक भोग निश्चित दुःख-परिणामी और आत्माका पतन करनेवाले हैं – इसीलिए भोग-कामना की पूर्ती के लिए संतका संग तथा सेवन तो पवित्र अमृत के बदले हलाहल विष मांगनेके समान हैं | यद्यपि संतसे विष मिलता नहीं, क्योंकि उनमें विष है ही नहीं, तथापि लौकिक भोग-कामी साधक परम परमार्थ-धनसे तो दीर्घकाल तक वंचित रह ही जाता है | अतएव संतका संग और सेवन केवल भगवत-प्राप्ति के लिए अथवा उस संतकी संतुष्टि के लिए ही करो |

 

याद रखो -संतका संग और सेवन यदि भगवत-प्राप्तिके शुद्ध-भावसे होगा तो निश्चय ही – साधक की स्तिथि तथा साधनकी गतिके अनुसार – उसको परमार्थ-पथपर प्रगतिके अनुभव होने लगेंगे और वह उत्तरोत्तर आगे बढ़ता चला जाएगा |.... शेष अगले ब्लॉग में .        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, परमार्थ की मन्दाकिनीं, कल्याण कुञ्ज भाग – ७,  पुस्तक कोड ३६४,  गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!      
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Ram