Wednesday, 1 May 2013

आनन्द की लहरें-१६



श्रीहरिः
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख कृष्ण षष्ठी-सप्तमी, मंगलवारवि० स० २०७०


दूसरेके द्वारा तुम्हारा कभी कोई अनिष्ट हो जाय तो उसके लिये दुःख न करो; उसे अपने पहले किये हुए बुरे कर्मका फल समझो, यह विचार कभी मनमें मत आने दो कि 'अमुकने मेरा अनिष्ट कर दिया है, यह निश्चय समझो कि ईश्वरके दरबारमें अन्याय नहीं होता, तुम्हारा जो अनिष्ट हुआ है या तुमपर जो  विपत्ति आयी है, वह अवश्य ही तुम्हारे पूर्वकृत कर्मका फल है, वास्तवमें बिना कारण तुम्हे कोई कदापि कष्ट नहीं पहुँचा सकता । यही सम्भव है कि कार्य पहले हो और कारण पीछे बने, इसलिये तुम्हे जो कुछ भी दुःख प्राप्त होता है, सो अवश्य ही तुम्हारे अपने कर्मोंका फल है; ईश्वर तो तुम्हे पापमुक्त करनेके लिये दयावश न्यायपूर्वक फलका विधान करता है ! जिसके द्वारा तुम्हे दुःख पहुँचा है उसे तो केवल निमित्त समझो; वह बेचारा अज्ञान और मोहवश निमित्त बन गया है; उसने तो अपने ही हाथों अपने पैरोंमें कुल्हाड़ी मारी है और तुम्हे कष्ट पहुँचानेमें निमित्त बनकर अपने लिये दु;खोंको निमन्त्रण दिया है; यह तो समझते ही होंगे कि जो स्वयं दु:खोकों बुलाता है वह बुद्धिमान् नहीं है, भुला हुआ है; अतः वह दयाका पात्र है ! उसपर क्रोध न करो, बदलेमें उसका बुरा न चाहो, कभी उसकी अनिष्टकामना न करो, बल्कि भगवान् से प्रार्थना करो कि हे भगवन् ! इस भूले हुए जीवको सन्मार्गपर चढ़ा दो! इसकी सदबुद्धिको जाग्रत कर दो; इसका भ्रमवश किया हुआ अपराध क्षमा  करो ! 


श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, आनन्द की लहरें पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!  
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Ram