|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, चतुर्थी, मंगल, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे... गौओं को यज्ञ का अंग और साक्षात् यज्ञस्वरूप बतलाया गया है | इनके बिना यज्ञ
किसी तरह नहीं हो सकता | ये अपने दूध और घी से प्रजा का पालन-पोषण करती है तथा
इनके पुत्र (बैल) खेती के काम आते है और तरह तरह के अन्न एवं बीज पैदा करते है,
जिनसे यज्ञ संपन्न होते है और हव्य-कव्य का भी काम चलता है | इन्हीं से दूध, दही
और घी प्राप्त होते है | ये गौए बड़ी पवित्र होती है और बैल भूक प्यास कष्ट सह कर
अनेको प्रकार के बोझ ढोते रहते है | इस प्रकार गौ-जाति अपने काम से ऋषियों तथा
प्रजाओं का पालन करती रहती है | उसके व्यवहार में शठता या माया नहीं होती | वह सदा
पवित्र कर्म में लगी रहती है | इसी से ये गौएँ हम सब लोगों के उपर स्थान में निवास
करती है | इसके सिवा गौएँ वरदान भी प्राप्त कर चुकी है तथा प्रसन्न होने पर वे
दूसरों को वरदान भी देती है | (महा० अनु०
८३ |१७-२१)
गौएँ सम्पूर्ण तपस्विओं से भी बढकर है | इसलिए भगवान शंकर
ने गौओं के साथ रहकर तप किया था | जिस ब्रह्मलोक में सिद्ध ब्रह्मर्षि भी जाने की
इच्छा करते हैं, वहीँ ये गौएँ चन्द्रमा के साथ निवास करती है | ये अपने दूध, दही,
घी, गोबर, चमड़ा, हड्डी, सींग और बालों से भी जगत का उपकार करती है | इन्हें सर्दी,
गर्मी और वर्षा का कष्ट विचलित नहीं करता | ये गौएँ सदा ही अपना काम किया करती है |
इसलिए ये ब्राह्मणों के साथ ब्रह्मलोक में जाकर निवास करती है | इसे से गौ और
ब्राह्मण को विद्वान पुरुष एक बताते है | (महा०
अनु० ६६ |३७-४२) .......शेष अगले ब्लॉग में .
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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