Wednesday, 22 May 2013

धारण करने योग्य ५१ बाते -५-


|| श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, द्वादशी, बुधवार, वि० स० २०७०

 
गत ब्लॉग से आगे...३९. पराई स्त्री को जलती हुई आग या सिंह से भी अधिक भयानक समझों | स्त्री सम्बन्ध चर्चा न करों | स्त्री चिन्तन न करों, स्त्रियों के चित्र न देखों, स्त्रियों के सम्बन्ध की पुस्तके न पढों | यथासाध्य स्त्री-सहवास अपनी स्त्री से भी कम करो | यही बात स्त्री के लिए पर-पुरुष के सम्बन्ध में है |

४०. सदा अशुभ भावनाओं से अपने को न घिरा रहने दो | उनको दूर भगाये रखों |

४१. विपत्ति में धीरज और सत्य न छोड़ो, दुसरे पर दोष न दो |

४२. जहाँ तक हो क्रोध न आने दो | क्रोध आ जाये तो उस्ककुच प्रायश्चित करों |

४३. दूसरों के दोष न देखों, अपने देखों | किसी को छोटा न समझों | अपना दोष स्वीकार करने को सदा तैयार रहों |

४४. अपने दोषों की एक डायरी रखों; रात को रोज देखों और कल ये दोष नहीं होंगे ऐसा दृढ निश्चय करों |

४५. वासनाओ-कामनाओं को जीतने की चेष्टा करो | कामनापूर्ति की अपेक्षा कामनाओं को जीतने में ही सुख है |

४६. अहिंसा, सत्य और दया को विशेष बढाओ |

४७. जीवन का प्रधान लक्ष्य एक ही है, यह दृढ निश्चय कर लो | वह लक्ष्य है –‘भगवान की अपलब्धि|’

४८. विषयचिन्तन,अशुभचिन्तन त्याग करके  यथासाध्य भगवतचिन्तन का अभ्यास करों |

४९भगवान जो कुछ दे,उसी को आनन्द के साथ ग्रहण करने का अभ्यास करों |

५०. इज्जत, मान और नाम का मोह न करों |

५१. भगवान की कृपा में विश्वास करों |        

श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
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Ram