|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, द्वादशी, बुधवार, वि० स० २०७०
गत ब्लॉग से आगे...३९. पराई स्त्री को जलती हुई आग या सिंह
से भी अधिक भयानक समझों | स्त्री सम्बन्ध चर्चा न करों | स्त्री चिन्तन न करों,
स्त्रियों के चित्र न देखों, स्त्रियों के सम्बन्ध की पुस्तके न पढों | यथासाध्य
स्त्री-सहवास अपनी स्त्री से भी कम करो | यही बात स्त्री के लिए पर-पुरुष के
सम्बन्ध में है |
४०. सदा अशुभ भावनाओं से अपने को न घिरा रहने दो | उनको दूर
भगाये रखों |
४१. विपत्ति में धीरज और सत्य न छोड़ो, दुसरे पर दोष न दो |
४२. जहाँ तक हो क्रोध न आने दो | क्रोध आ जाये तो उस्ककुच
प्रायश्चित करों |
४३. दूसरों के दोष न देखों, अपने देखों | किसी को छोटा न
समझों | अपना दोष स्वीकार करने को सदा तैयार रहों |
४४. अपने दोषों की एक डायरी रखों; रात को रोज देखों और कल
ये दोष नहीं होंगे ऐसा दृढ निश्चय करों |
४५. वासनाओ-कामनाओं को जीतने की चेष्टा करो | कामनापूर्ति
की अपेक्षा कामनाओं को जीतने में ही सुख है |
४६. अहिंसा, सत्य और दया को विशेष बढाओ |
४७. जीवन का प्रधान लक्ष्य एक ही है, यह दृढ निश्चय कर लो |
वह लक्ष्य है –‘भगवान की अपलब्धि|’
४८. विषयचिन्तन,अशुभचिन्तन त्याग करके यथासाध्य भगवतचिन्तन का अभ्यास करों |
४९भगवान जो कुछ दे,उसी को आनन्द के साथ ग्रहण करने का
अभ्यास करों |
५०. इज्जत, मान और नाम का मोह न करों |
५१. भगवान की कृपा में विश्वास करों |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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