|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
वैशाख शुक्ल, त्रयोदशी, गुरूवार,
वि० स० २०७०
भगवान को भक्तो का बड़ा महत्व
है | वे जगत के लिए आदर्श होते है; क्योकि भगवद्भक्ति के प्रताप से उनमे दुर्लभ दैवी गुण अनिवार्यरूप से प्रकट
हो जाते है, जो उनके लिए स्वाभाविक लक्षण होते है | भक्त का स्वरुप जानने के लिये
उन लक्षणों का जानना आवश्यक है | उनमे से कुछ ये है -
१.
भक्त अज्ञानी नहीं
होता, वह भगवान के प्रभाव, गुण, रहस्य को तत्व से जानने वाला होता है | प्रेम के
लिए ज्ञान की बड़ी आवश्यकता है | किसी न किसी अंश में जाने बिना उससे प्रेम नहीं हो
सकता और प्रेम होने पर ही उसका गुह्तम यथार्थ रहस्य जाना जाता है | भक्त भगवान के
गुह्तम रहस्य को जानता है, इसलिए भगवान के प्रति उसका प्रेम उतरोतर बढ़ता ही रहता
है | भगवान रससार है | उपनिषद भगवान को ‘रसो वै स:’ कहते है | इस प्रेम में भी द्वैत नहीं भासता ! प्रेम की प्रबलता से ही राधा जी
कृष्ण बन जाती है और श्री कृष्ण राधा जी | कबीर साहब कहते है –
जब में
था तब हरी नहीं, अब हरी हैं मैं नायँ |
प्रेम-गली
अति साँकरी, यामे दो न समायँ ||
वस्तुत: ज्ञानी और भक्त की स्थिति में कोई अन्तर
नहीं होता | भेद इतना ही है, ज्ञानी ‘सर्वं खल्विदं
ब्रह्म’ कहता है और भक्त ‘वासुदेव: सर्वमिति’
अथवा गोसाइजी की भाषा में वह कहता है –
सिय राममय सब जग जानी |
करऊँ
प्रनाम जोरि जग पानी || .........शेष
अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्दार भाईजी, भगवच्चर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
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